
A unique love story of Rani Lilavati रानी लीलावती की अनोखी प्रेमकहानी
A unique love story of Rani Lilavati रानी लीलावती की अनोखी प्रेमकहानी
मथुरा के राजा इंद्रजीत की एक बेटी थी जिसका नाम लीला था जो बहुत ही सुंदर थी उसकी सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी उधर एक तरफ आवारा और व्यस्या आगामी युवक था जिसका नाम नारायण था ना जाने उसने लीला पर कौन सा वशीकरण मंत्र चलाया था कि वह उसे अपना हृदय दे बैठी थी परंतु नारायण अधिक दिन तक जीवित नहीं रहा उसे सर पर चोट

लगने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई नारायण की मृत्यु के बाद राजकुमारी लीला को गहरा सदमा लगता है जिसके कारण वह कभी शादी ना करने का फैसला लेती है और अपने आप को एक कमरे में बंद कर लेती है लीला ने अपने कमरे में नारायण की मूर्ति बनाकर रख ली और विधवा के वेश में सबसे अलग थलग रहने लगी उसके साथ में केवल उसकी एक सेविका थी
राजकुमार बंधु की अनोखी योजना
राजकुमारी लीला की खूबसूरती के कारण अनेक राजकुमार रानी लीला से विवाह करने के इच्छुक थे उन्हीं में से एक थे राजकुमार बंधु जो राजकुमारी लीला के सौंदर्य के दीवाने थे वह मन ही मन लीला से प्रेम करने लगे थे एक दिन वह लीला के पिता राजा इंद्रजीत से मिले और अपने और लीला की विवाह की इच्छा जाहिर की राजा इंद्रजीत ने कहा मुझे तो ला के साथ आपके विवाह में कोई
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आपत्ति नहीं परंतु तुम्हें राजकुमारी का हृदय जीतना होगा यदि तुम सफल हुए तो राजकुमारी ही नहीं मेरा आधा राज्य भी प्राप्त कर सकोगे पर कठिनाई तो यह है कि वह किसी से भेंट नहीं करती या तो वह अपनी कच्छ में रहती है या फिर झरोकों से जमुना को निहारती रहती है राजकुमार बंधु ने तुरंत एक योजना बनाई और राजा से पूछा राजकुमारी को झरोखों के नीचे नागरिकों के
आने में तो कोई आपत्ति नहीं होती राजा ने कहा अभी तक तो उसने कोई आपत्ति नहीं की है इस प्रकार राजकुमार बंधु ने अपनी योजना के अनुसार एक पुतला तैयार करवाया आया, औरत के कपड़े पहना दिए, फिर नाविक के भेज में राजकुमारी के झरोकों की ओर चल पड़ा। झरोकों पर खड़ी हुई थी नाविक को देख उसने
नाविक का निवेदन और राजकुमारी की सहमति
पूछा कौन हो तुम यहां क्यों आए हो उसने उत्तर दिया मेरी नाव बहुत पुरानी है और तूफान भी आने को है अपनी मालकिन से पूछकर बताओ कि क्या मैं यहां कुछ समय के लिए रुक सकता हूं राजकुमारी लीला समझ गई कि नाविक उसे नहीं पहचानता इसी लिए उसने कोई आपत्ति नहीं की कुछ समय पश्चात उसने नदी तट से नाविक की आवाज सुनी उसने अपनी दासी को यह
देखने के लिए भेजा कि नाविक क्या कर रहा है दासी नदी तट पर आई तो उसने देखा कि नाविक ने दो व्यक्तियों का खाना बनाया हुआ है एक व्यक्ति के लिए उसने चांदी के पात्रों में परोसा और दूसरे के लिए पत्तल पर वह पुतली को मनाते हुए कह रहा है आओ प्रिय खा लो देखो मैं तुम्हारे बिना कैसे खाऊं जब तुम जीवित थी तब भी क्या हम अलग-अलग खाते थे दासी ने पूछा नाविक यह

पुतली कैसे खाएगी यह किसकी पुतली है नाविक ने गले से लगाकर कहा यह मेरी पत्नी की पुतली है चार वर्ष पहले ही उसकी मृत्यु हो गई थी वह मेरे बिना कभी खाना नहीं खाती थी मैं भी उसे बहुत प्रेम करता हूं उसकी मृत्यु के बाद मैंने उसकी पुतली बनवाई है इसलिए इसे हमेशा साथ रखता हूं दासी ने आश्चर्य से पूछा ले लेकिन इसके आगे तो
चांदी की थाली, पत्तल का प्रेम
तुमने चांदी के पात्रों में भोजन रखा है अपने सामने पत्तल में नाविक ने कहा क्योंकि मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूं ना मैंने इसके लिए बढ़िया वस्त्र और आभूषण भी बनवाए हैं जिसे रोज बदल देता हूं दिखाओ तुम्हें नाविक ने दासी की उत्सुकता बढ़ा दी दासी ने जब वस्त्र और आभूषण देखे तो आश्चर्य चकित रह गई यह सोचने लगी कि नाविक स्वयं चिथड़े पहने था
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नाविक ने कहा मेरा क्या है अब किसके लिए पहनू जितना कमाता हूं इस पर ही खर्च कर देता हूं दासी ने जाकर सारी बात राजकुमारी लीला को बता दी राजकुमारी ने सोचा कि यह कैसा व्यक्ति है जो अपनी मृत पत्नी से इतना प्रेम करता है जब वह जीवित रही होगी तो वह उसे कितना प्रेम करता रहा होगा अगले दिन नदी तट से कराने की आवाज सुनाई दी
लीला ने दासी को नीचे भेजा उसने जाकर देखा कि नाविक के माथे पर पट्टी बंधी है और वह कराह हुआ किसी को गाली दे रहा है उसने पूछा क्या हुआ नाविक ने बताया कि रात को अचानक किसी ने मुझ पर हमला कर दिया मैं तैयार नहीं था इसलिए चोट खा गया मगर अब वह मिल जाए तो उसकी हड्डी पसली एक कर दूं वह मेरी पतवार भी ले गया इसलिए मैं नाव भी
पतवार, वैद्य और राजकुमारी की कृपा

नहीं ले जा सकता अगर तुम्हारी रानी की कृपा हो जाए तो नाव को छोड़कर बाजार से नई पतवार ले आऊ और वैद्य से दवा भी ले आऊ दासी लीला से उसकी अनुमति देकर लौट आई राजा दासी के लिए
एक जड़ाऊ हार खरीदा और लौट आया उसकी आवाज सुनकर दासी नदी तट पर आ गई यह लो हार असली हीरो का है तुम्हारे लिए ही लाया हूं बस तुम्हें मेरा एक छोटा
सा काम करना है कि तुम्हारे सामने के कक्ष में जो मूर्ति रखी है वह मुझे रात भर के लिए ला दो सूर्योदय से पहले ले जाना दासी मान गई राजकुमारी के सो जाने के बाद दासी ने नारायण की मूर्ति नाविक को
लाकर दे दी सूर्योदय से पहले ही नदी तट पर शोर सुनाई दिया राजकुमारी की आंख खुल गई वह उठी और झरोखों पर आकर देखा कि नाविक अपनी पत्नी
की पुतली को बुरा भला कह रहा है अब मेरा तुम्हारा कोई संबंध नहीं तुम्हारे मरने के बाद मैंने कभी दूसरा विवाह नहीं किया तुम्हारा इतना ध्यान रखा कि पहले तुम्हें खिलाया फिर खुद खाया वस्त्र और आभूषण दिए खुद मैं चिथड़े पहनता रहा और जब मैं एक रात के लिए बाहर गया तुमने अपने प्रेमी को बुला लिया राजकुमारी ने सोचा कि पुतली
राजकुमारी का संदेह और मूर्ति का गायब होना
कैसे किसी को बुला सकती है वह दूसरे कक्ष में पहुंची कि दासी को भेजकर पता लगाए कि सच क्या है वहां पहुंचकर वह चीख उठी उसने देखा कि नारायण की मूर्ति वहां नहीं थी नीचे से आवाज आ रही थी नाविक रोता हुआ कह रहा था मुझे क्या पता था कि यहां प्रेत रहता है पहले इसने मुझे कल रात मारा अब वह मेरी पत्नी से प्रेम कर रहा है यह प्रेत
भूमि है राजकुमार लीला झरोखों में खड़ी सब सुन रही थी उसने वहीं से पूछा लेकिन बेजान मूर्तियां इंसानों की तरह व्यवहार कैसे कर सकती है नाविक प्रेत खुद कुछ नहीं कर सकते यदि उन्हें शरीर प्राप्त हो जाए तो वह ठीक मानव जैसा ही व्यवहार करते हैं यह मूर्ति जरूर किसी लंपट व्यक्ति की होगी जिसने पहले मुझ पर आक्रमण किया और फिर मेरी
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पत्नी को वह का लिया लेकिन मेरी पत्नी भी तो कुलटा निकली नाविक क्रोध में जोर-जोर से बोलने लगा मैं ऐसी विश्वासघाती पत्नी की याद में क्यों पागल बना घूमता रहूं मैं दोनों को नदी में डुबो दूंगा यह कहकर उसने अपने पुतली और मूर्ति दोनों को उठाकर यमुना में फेंक दिया राजकुमारी लीला सोचने लगी क्या नारायण इतना लंपट था कि अवसर
राजकुमारी का निर्णय और प्रस्ताव
मिलते ही दूसरे की स्त्री के पास जा पहुंचा अगर वह लंपट ना होता तो उसका प्रेत इतना नहीं नहीं और उस लंपट नारायण के लिए मैं विधवा सा जीवन व्यतीत करती रही नहीं अब और नहीं वह दौड़कर नदी तट पर पहुंची नाविक वहां से लौटने का अभिनय कर रहा था राजकुमारी लीला ने उसे रोक कर कहा सुनो मैं दासी नहीं राजकुमारी लीला हूं वह मूर्ति नारायण की थी जिससे मेरा विवाह
होने वाला था वह चोट लगने से मर गया और शादी हुए बिना ही में विधवा सा जीवन व्यतीत करने लगी अब मेरी आंखें खुल गई हैं सुनो मुझसे शादी करोगे नाविक सिर नीचे करके सुनता रहा कुछ समय पश्चात राजकुमारी लीला और नाविक के भेष में राजकुमार बंधु को अपने समक्ष पाकर राजा इंद्रजीत मन ही मन मुस्कुराए और राजकुमार बंधु को उसकी सफलता पर बधाई दी परंतु राजकुमारी को
सुनाकर उन्होंने कहा बेटी नाविक तो अत्यंत निर्धन लगता है लीला ने कहा पिताजी यह निर्धन अवश्य है परंतु उसका हृदय निर्मल है मैं इसके साथ सुखी रहूंगी राजा इंद्रजीत और राजकुमार बंधु एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराए राजकुमारी नीचे की तरफ देख खड़ी रही दोनों की शादी हो गई राजकुमार बंधु को लीला के साथ-साथ आधा राज्य भी मिल गया और दासी को नाविक की मृतक पत्नी यानी पुतली के सारे आभूषण मिल गए
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Love story of राजकुमार रितुध्वज
1. राजकुमारी लीला किससे प्रेम करती थी और उसका क्या अंत हुआ?
उत्तर:
राजकुमारी लीला मथुरा के राजा इंद्रजीत की बेटी थी और वह एक आवारा युवक नारायण से प्रेम करने लगी थी। दुर्भाग्यवश, नारायण की सर पर चोट लगने से मृत्यु हो गई, जिससे लीला को गहरा सदमा लगा और उसने विवाह न करने का निर्णय लिया।
2. राजकुमार बंधु ने राजकुमारी लीला का दिल जीतने के लिए क्या योजना बनाई?
उत्तर:
राजकुमार बंधु ने एक नाविक का वेश धारण कर लीला के झरोखे के नीचे आना-जाना शुरू किया। उन्होंने एक पुतली को अपनी मृत पत्नी बताकर प्रेम की गहराई का नाटक किया ताकि लीला के मन में प्रेम की भावना जागृत हो और वह उनके प्रेम को समझे।
3. राजकुमारी लीला ने नारायण की मूर्ति को नाविक को क्यों दे दी?
उत्तर:
नाविक (राजकुमार बंधु) ने दासी से आग्रह किया कि वह राजकुमारी की मूर्ति (नारायण की) उसे एक रात के लिए दे दे। वह दिखाना चाहता था कि मूर्ति (जो उसकी ‘पत्नी’ थी) विश्वासघात कर रही है। इससे राजकुमारी लीला को नारायण के प्रति मोहभंग हुआ।
4. राजकुमारी लीला को यह कैसे समझ में आया कि नारायण के लिए जीना व्यर्थ था?
उत्तर:
जब नाविक ने मूर्ति और पुतली को यमुना में फेंकते हुए नारायण को ‘लंपट प्रेत’ कहा, तब राजकुमारी को लगा कि वह अपने जीवन के सबसे बड़े भ्रम में थी। उसे यह समझ आया कि नारायण के लिए त्याग करना व्यर्थ था, और उसने अपने वर्तमान जीवन को स्वीकार करने का निर्णय लिया।
5. कहानी का अंत क्या है? क्या राजकुमारी लीला और राजकुमार बंधु का विवाह हुआ?
उत्तर:
हाँ, अंत में राजकुमारी लीला को सच्चे प्रेम की पहचान हो गई और उसने राजकुमार बंधु से विवाह करने का निर्णय लिया। राजा इंद्रजीत ने भी यह रिश्ता स्वीकार किया और आधा राज्य राजकुमार बंधु को दे दिया। कहानी सुखद अंत के साथ समाप्त होती है।
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यह कहानी वाकई में बहुत मार्मिक और प्रेरणादायक है। लीला का प्रेम और उसकी निष्ठा सच में दिल को छू जाती है। नारायण के प्रति उसका समर्पण और उसके बाद उसका एकांतवास, यह दिखाता है कि प्रेम कितना गहरा हो सकता है। राजकुमार बंधु की योजना भी काफी रोचक है, लेकिन क्या वह सच में लीला का दिल जीत पाएगा? मुझे लगता है कि लीला का हृदय अब भी नारायण के साथ बंधा हुआ है। क्या आपको नहीं लगता कि यह कहानी प्रेम और त्याग का एक सही उदाहरण है? मैं यह जानना चाहूंगा कि क्या लीला कभी अपने दुख से बाहर निकल पाएगी और क्या उसका जीवन फिर से खुशियों से भर सकता है?
लीला की कहानी वाकई दिल को छू जाने वाली है। उसका प्रेम और त्याग किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। यह कहानी हमें बताती है कि प्रेम कितना गहरा और अटूट हो सकता है। लीला का नारायण के प्रति समर्पण और उसके बाद के जीवन का निर्णय सोचने पर मजबूर कर देता है। क्या यह सच है कि प्रेम में इतना बल होता है कि व्यक्ति अपना सब कुछ त्याग दे? राजकुमार बंधु की योजना क्या सफल होगी? क्या लीला का हृदय कभी किसी और के लिए धड़क सकता है? यह कहानी हमें प्रेम, त्याग और जीवन के मूल्यों के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करती है।
यह कहानी वाकई बहुत मार्मिक और प्रेरणादायक है। लीला का प्रेम और उसकी निष्ठा सच में अद्भुत है। नारायण के प्रति उसका समर्पण और उसकी मृत्यु के बाद का उसका दुख दिल को छू जाता है। राजकुमार बंधु की योजना और उसकी चालाकी भी काफी रोचक है। क्या आपको नहीं लगता कि लीला का अकेलापन और उसकी दुखभरी जिंदगी उसके लिए एक तरह की सजा बन गई है? क्या आपको लगता है कि राजकुमार बंधु की योजना सफल होगी और वह लीला का दिल जीत पाएगा? मैं यह जानना चाहूंगा कि क्या लीला कभी अपने दुख से बाहर निकल पाएगी और फिर से खुश रह पाएगी?
रानी लीलावती की प्रेमकहानी वाकई बहुत मार्मिक और अनोखी है। उसका नारायण से प्रेम और उसके बाद का उसका एकांतवास दिल को छू जाता है। राजकुमार बंधु की योजना काफी रोचक है, लेकिन क्या वह लीला का दिल जीत पाएगा? लीला की भावनाएं इतनी गहरी हैं कि उसे किसी के लिए अपना दिल खोलने में काफी समय लगेगा। यह कहानी प्रेम, त्याग और संघर्ष की एक सुंदर मिश्रण है। क्या आपको नहीं लगता कि लीला की तरह गहरे दुख में डूबे व्यक्ति को शांति पाने का कोई और तरीका हो सकता है? क्या आपको लगता है कि राजकुमार बंधु की योजना सफल होगी या लीला अपने दुख में ही डूबी रहेगी?
रानी लीलावती की यह प्रेमकहानी वाकई मन को छू जाने वाली है। लीला का नारायण के प्रति इतना गहरा प्रेम और उसकी मृत्यु के बाद उसका एकांतवास, यह दर्शाता है कि प्रेम कितना शक्तिशाली हो सकता है। राजकुमार बंधु की योजना भी काफी रोचक है, लेकिन क्या वह सच में लीला का दिल जीत पाएगा? मुझे लगता है कि लीला का हृदय अब भी नारायण के प्रति समर्पित है, और किसी और के लिए जगह नहीं है। क्या आपको नहीं लगता कि राजकुमार बंधु को लीला की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए? यह कहानी प्रेम, त्याग और समर्पण की एक अनोखी मिशाल है। क्या आपको लगता है कि लीला को अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए, या उसका यह एकांतवास सही है?