
Horror Stories रूट नंबर-375
रात के तकरीबन 10 बज गए थे। शूप बस स्टॉप पर खड़ा होकर शाम की अंतिम बस का इंतजार कर रहा था जो उसे कोलकाता से उसके गांव डकपो तक पहुंचाने वाली थी। मौसम विभाग ने पहले ही तूफान के आने की चेतावनी जारी कर रखी थी। चारों ओर बस पानी ही पानी नजर आ रहा था। इतनी तेज बारिश में ज्यादा दर यहां खड़ा भी नहीं रह पाऊंगा, क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा। ऐसे ही असमंजस में फंसे शुभ अगले एक घंटे तक उसी बस स्टॉप पर खड़ा रहता है।

लेकिन ना तो उसे सामने से कोई बस आती दिखाई दे रही थी और ना ही आसपास किसी इंसान के होने की आहट सुनाई दे रही थी। रात के अंधेरे में यूं अकेले सड़क पर खड़े हुए अब उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था। अचानक ही उसने देखा कि सामने से एक पुरानी पीली धारी वाली बस चली आ रही है जिसके ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में रूट नंबर 375 लिखा हुआ था। “थैंक गॉड! रूट 375 की बस मिल तो गई,” शुभ ने सोचा।
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कोलकाता में नौकरी
बस थोड़ी अजीब लग रही थी। इतने सालों से कोलकाता से अपने गांव जाते हुए उसने ऐसी बस कभी नहीं देखी थी। लेकिन रात का समय था, और शुभ के पास ज्यादा सोचने का समय नहीं था। उसने सामने से आती बस के सामने खड़े होकर जोर-जोर से हाथ हिलाना शुरू कर दिया। बस उसके बिल्कुल नजदीक आकर रुक गई और शुभ लपक कर उसमें चढ़ गया।

बस के अंदर जाने पर शुभ ने देखा कि बस बिल्कुल खाली है। बस के अंदर एक ड्राइवर, कंडक्टर और शुभ के अलावा तीन लोग और भी थे, जो बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बिल्कुल चुपचाप बैठे हुए थे। उन्होंने कुछ अजीबो गरीब किस्म के कपड़े पहने हुए थे। कंडक्टर ने शुभ से पूछा, “अरे इतने तूफान में कहां जाने के लिए निकले हो? कहां जाना है तुम्हें?” शुभ ने जवाब दिया, “देखिए कंडक्टर साहब, मैं कोलकाता में नौकरी करता हूं लेकिन हर शुक्रवार को अपनी मां से मिलने के लिए डकपो जाता हूं।”
कंडक्टर ने कहा, “ठीक है, लेकिन इस बस में सफर करने का एक नियम है कि इसमें बैठने के बाद किसी को भी सोना नहीं है।” कंडक्टर की बात सुनकर शुभ मुस्कुराया और उसकी बात को टाल दिया। बाहर अभी भी जोर की बारिश हो रही थी और सड़क पर दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। हर तरफ बस आसमान से बरसता पानी ही पानी था। रात के तकरीबन 12 बज गए थे और शुभ को नींद आने लगी थी। तभी कंडक्टर ने आकर पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया। शुभ ने चौंक कर पूछा, “क्या हुआ? कौन है?”
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आधी रात का समय है
कंडक्टर ने कहा, “मैंने कहा था ना कि इस बस में बैठकर सोना नहीं है।” शुभ ने जवाब दिया, “यह कैसी बात कर रहे हैं आप? आधी रात का समय है, किसी को भी नींद आ सकती है।” कंडक्टर ने कहा, “हां वही तो मैं कह रहा हूं कि आधी रात का समय है। किसी को भी नींद आ सकती है और अगर सभी पैसेंजर सो जाएंगे तो ड्राइवर को भी नींद आ सकती है। अगर ड्राइवर को नींद आ गई तो आप सभी को बहुत समस्या हो जाएगी। इसीलिए मैं कहता हूं कि मेरी बस में सफर करने का पहला नियम यही है कि यात्रियों को सोना नहीं है।”
कंडक्टर की बात सुनकर शुभ को कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। उसने महसूस किया कि कंडक्टर बात करते समय थोड़ा अजीब सा बर्ताव कर रहा था। उसकी आंखों के नीचे काले गहरे गड्ढे दिखाई दे रहे थे और पुतलियां बिल्कुल लाल नजर आ रही थी। कंडक्टर ने कहा, “अब आप इस बस में बैठ गए हैं, तो आपको जगा कर रखने में आपकी मदद करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं। कहानी सुनने से आपको नींद नहीं आएगी। सैकड़ों साल पहले की बात है, कोलकाता में एक समय महाराज आनंद राय बाबू का राज था। आनंद बाबू सुंदरता के बहुत बड़े उपासक थे। उनके दरबार में केवल वही लोग नौकरियां कर सकते थे जो दिखने में सुंदर हों। बदसूरत चेहरों की औरतो को वे देखना भी पसंद नहीं करते थे।”
विद्वान चित्रकार
कंडक्टर ने कहानी सुनाना शुरू किया, “एक बार की बात है, राज्य में एक विद्वान चित्रकार हुआ था। वह तस्वीर बनाता जिसे देखकर लगता कि वह तस्वीर अभी बोल उठेगी। उस चित्रकार ने महाराज की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर बनाई और उसे सुंदर रेशमी कपड़े में लपेटकर महाराज के पास भिजवा दिया। जब महाराज के नाम से आया हुआ गुमनाम उपहार उनके सामने खोला गया तो तस्वीर की खूबसूरती देखकर महाराज दंग रह गए। महाराज ने तुरंत चित्रकार को राज दरबार में पेश होने का हुक्म दिया। अगले दिन चित्रकार खुशी-खुशी राजा के सामने पेश हो गया। लेकिन चित्रकार को देखकर महाराज गुस्से से भर गए और उन्होंने उसे राज्य से बाहर निकलवा दिया क्योंकि वह चित्रकार बदसूरत और बौना आदमी था। राजा को बदसूरत लोगों से चिढ़ थी।”
कंडक्टर ने शुभ से पूछा, “क्या तुम मिलना चाहोगे उस बौने से?” शुभ ने कहा, “यह कैसा मजाक है? आपने ही तो अभी कहा कि यह कहानी सैकड़ों साल पुरानी है तो फिर मैं उस बौने को कैसे मिल सकता हूं?”
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इतना कहते ही गाड़ी की पिछली सीट पर काले लबादे से चेहरा ढककर बैठा हुआ आदमी झटके से उसके सामने आ गया और अपना लबादा हटा दिया। चेहरे के ऊपर से कपड़ा हटते ही शुभ ने देखा कि काले कपड़ों के पीछे सीट पर बैठे आदमी का चेहरा बेहद डरावना था। उसके चेहरे का मांस जगह-जगह से गल चुका था और हड्डियां दिखाई दे रही थी। कंडक्टर ने बताया, “उस रात वह चित्रकार बहुत रोया और उसने इसी पहाड़ी से कूदकर आत्महत्या कर ली। उस बौने चित्रकार को ना तो जीते जी सुकून मिला और ना ही मरने के बाद उसकी आत्मा को शांति मिल सकी।” शुभ ने डरते हुए कहा, “यह सब क्या मजाक चल रहा है? यह सब मजाक है ना? मैं वादा करता हूं, अब मैं नहीं सोऊंगा। यह कहानी यहीं बंद कर दो।”
यह कोई सामान्य बस नहीं है
कंडक्टर और ड्राइवर जोर-जोर से हंसने लगे। उन्होंने कहा, “जिस बस में बैठकर तुम हमारे साथ अपने गांव जा रहे हो, यह बस 20 साल पहले खाई में गिर चुकी है। उस रात हमने भी इस बौने को कहा था कि बंद कर दो यह कहानी, लेकिन पूरी कहानी सुनाए बिना यह चुप नहीं हुआ।” शुभ ने डरते हुए पूछा, “अगर यह 20 साल पहले की खाई में गिरी हुई बस है, तो तुम सब कौन हो?” इससे पहले कि शुभ को अपने सवाल का जवाब मिल पाता, अचानक ही वह बस खाई में गिर गई।
दस साल बाद, प्रीति भी ऐसा ही सोच रही थी। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी और उसे बस स्टॉप पर खड़े हुए तीन घंटे बीत गए थे। तभी एक बूढ़ी औरत लाठी टिकाए उसके पास आकर खड़ी हो गई। बूढ़ी औरत दिखने में बहुत ही भद्दी और डरावनी सी दिखाई दे रही थी। तभी उनके सामने से एक बस आती हुई दिखाई दी। प्रीति ने कहा, “यह कौन सी बस है? रूट नंबर 375? जहां तक मैं जानती हूं, इस रूट पर तो ऐसी कोई बस नहीं चलती।”
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प्रीति और वह बूढ़ी औरत बस में बैठ गईं। बस के अंदर सबसे पीछे की सीट पर काले रंग के अजीब पहनावे में तीन आदमी बैठे हुए थे। प्रीति ने महसूस किया कि बस उसे अजीब लग रही थी। ड्राइवर, कंडक्टर और यहां तक कि पीछे बैठे लोग भी उसे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे। बूढ़ी औरत बार-बार पीछे मुड़कर बस की लास्ट सीट पर बैठे आदमी की ओर देख रही थी। प्रीति ने उससे पूछा, “आप क्यों बार-बार पीछे देख रही हैं?” बूढ़ी औरत ने कहा, “बस रोको! यह कोई सामान्य बस नहीं है।” बस रुक गई और ड्राइवर ने बूढ़ी औरत और प्रीति को नीचे उतार दिया। प्रीति ने बूढ़ी औरत से पूछा, “आपने ऐसा नाटक क्यों किया?”
क्या यह बस वही रूट नंबर 375
बूढ़ी औरत ने जवाब दिया, “जिस बस में हम बैठे थे, वह कोई सामान्य बस नहीं थी। यह वही बस है जिसमें बैठने वाले लोग आज तक कभी लौट कर नहीं आए। उस काले लबादे वाले आदमी का कपड़ा हवा से उड़ गया और मैंने देखा कि उसके पैर ही नहीं थे। उस बिना पैरों वाले आदमी को देखकर मैं समझ गई कि बस में हमारे साथ सफर कर रहे लोग इंसान नहीं, बल्कि आत्माएं हैं। तुम्हारी जान बचाने के लिए मैंने यह नाटक किया।”
प्रीति ने चौंकते हुए पूछा, “क्या यह बस वही रूट नंबर 375 वाली बस है जिसके बारे में मैंने सुना था?” बूढ़ी औरत ने कहा, “हां बेटा, यह वही रूट नंबर 375 की बस है। तुम भाग्यशाली हो कि तुम समय रहते इससे उतर गईं।” प्रीति ने आसमान की ओर देखा और ऊपर वाले को धन्यवाद दिया। उन्होंने समझा दिया कि रात को अनजान रास्तों पर, अनजान बसों में सफर नहीं करना चाहिए।
कुछ समय बाद रूट नंबर 375 की बस दोबारा वहीं से गुजरी, और उसके दरवाजे से झांकते कंडक्टर ने एक भयानक हंसी के साथ कहा, “क्या तुम भी हमारे साथ सफर करोगे?” प्रीति ने बूढ़ी औरत की बातों को ध्यान से सुना और समझ गई कि उसने कितनी बड़ी मुसीबत से बचाई है। उसने बूढ़ी औरत का हाथ पकड़कर कहा, “धन्यवाद अम्मा, आपने मेरी जान बचाई। मैं अब कभी भी इस रूट की बस में सफर नहीं करूंगी।”
मुक्ति नहीं मिल सकती
बूढ़ी औरत ने सिर हिलाते हुए कहा, “बेटा, यह दुनिया रहस्यों से भरी है। कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जो जानकर भी हम नहीं समझ सकते। यह रूट नंबर 375 की बस उन रहस्यों में से एक है। जो भी इस बस में चढ़ता है, वह फिर कभी वापस नहीं लौटता।” प्रीति ने मन ही मन यह ठान लिया कि वह अब से रात में सफर करने से पहले पूरी जानकारी हासिल करेगी। वह उस बूढ़ी औरत के साथ सुरक्षित स्थान की ओर बढ़ गई। बूढ़ी औरत ने उसे एक कहानी सुनाई, जिसमें उसने बताया कि कैसे एक समय वह खुद भी इस बस में सफर कर चुकी थी और उसे भी एक अजनबी ने बचाया था।
कुछ देर बाद, प्रीति ने बूढ़ी औरत से पूछा, “अम्मा, आपने तो मेरी जान बचा ली, लेकिन क्या हमें इन आत्माओं से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिल सकती?” बूढ़ी औरत ने जवाब दिया, “बेटा, यह आत्माएं अपने कर्मों के कारण इस दुनिया में भटक रही हैं। इन्हें शांति तब मिलेगी जब ये अपने कर्मों का प्रायश्चित कर लेंगी। हमें बस इनसे दूर रहना चाहिए और किसी भी अनजान चीज़ से सावधान रहना चाहिए।”
दोनों ने साथ मिलकर प्रार्थना की
प्रीति ने सिर हिलाया और फिर दोनों ने साथ मिलकर प्रार्थना की, ताकि उन आत्माओं को शांति मिले। बूढ़ी औरत ने प्रीति को अपने घर तक पहुंचाया और फिर वापस अपनी राह पर चली गई। प्रीति ने उस रात को कभी नहीं भुलाया और हमेशा उस बूढ़ी औरत के प्रति कृतज्ञ रही।
समय बीतता गया, और प्रीति ने हमेशा लोगों को उस रूट नंबर 375 की बस के बारे में आगाह किया। उसने अपनी कहानी सुनाकर कई लोगों की जान बचाई। लेकिन हर रात, जब भी तूफान आता, लोग उस बस के डरावने किस्से सुनकर सिहर जाते।
इस तरह, रूट नंबर 375 की बस एक खौफनाक किंवदंती बन गई, और लोग उस रास्ते से बचने लगे। लेकिन जो भी उस रास्ते से गुजरता, वह एक बार पीछे मुड़कर जरूर देखता, कहीं वह बस उसके पीछे तो नहीं आ रही। और हर बार, अंधेरे में कहीं दूर से, एक गूंजती हुई हंसी सुनाई देती – कंडक्टर की हंसी, जो अब भी अपने अगले यात्री की तलाश में था।
यहाँ “रूट नंबर 375” कहानी पर आधारित पाँच अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) दिए जा रहे हैं:
1. रूट नंबर 375 की कहानी क्या है?
रूट नंबर 375 की कहानी एक भूतिया बस के इर्द-गिर्द घूमती है, जो तूफानी रात में कोलकाता से डकपो गाँव के बीच चलती है। मुख्य पात्र शुभ इस बस में सवार होता है और उसे रहस्यमय और डरावनी घटनाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें बस के यात्रियों का भूत होना शामिल है।
2. इस कहानी में कौन-कौन से मुख्य पात्र हैं?
कहानी के मुख्य पात्र शुभ, ड्राइवर, कंडक्टर, और तीन रहस्यमय यात्री हैं। इसके अलावा, एक बूढ़ी औरत भी कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो प्रीति को सचेत करती है।
3. क्या यह बस वास्तव में मौजूद है?
यह कहानी एक काल्पनिक और भूतिया कथा है। बस नंबर 375 का अस्तित्व केवल इस डरावनी कहानी में ही है, और इसका उद्देश्य पाठकों को डरावने और रहस्यमयी अनुभवों से परिचित कराना है।
4. शुभ को बस में क्या अजीब घटनाएं महसूस होती हैं?
शुभ को बस में कई अजीब घटनाएं महसूस होती हैं, जैसे कि बस का खाली होना, कंडक्टर का अजीब व्यवहार, और पीछे बैठे यात्रियों का डरावना रूप। अंततः, उसे पता चलता है कि ये सभी यात्री और चालक दल के सदस्य भूत हैं।
5. बूढ़ी औरत ने प्रीति को क्यों बचाया?
बूढ़ी औरत ने प्रीति को इसलिए बचाया क्योंकि उसने बस में बैठे यात्रियों की असलियत पहचान ली थी। उसने देखा कि यात्रियों में से एक का पैर नहीं था और समझ गई कि वे इंसान नहीं, बल्कि आत्माएं हैं। इसीलिए, उसने एक नाटक करके ड्राइवर को बस रोकने के लिए मजबूर किया ताकि प्रीति और उसकी जान बचाई जा सके।
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