
The story of apostle Thomas प्रेरित थॉमस की कहानी
The story of apostle Thomas प्रेरित थॉमस की कहानी
आज मैं आप सबको प्रेरित थॉमस के जीवन के बारे में बताने वाला हूं कि कैसे थॉमस एक संदेह करने वाले व्यक्ति से यीशु मसीह के सच्चे चेले बन गए। अंधेरी रात थी। ठंडी हवा यरूशलेम की तंग गलियों से होकर बह रही थी। चारों ओर सन्नाटा था। लेकिन थॉमस की आंखों में नींद नहीं थी। उनका मन उथल-पुथल से

भरा हुआ था। पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ था, वह उनकी समझ से परे था। क्या यह सब सच था? क्या यीशु सच में जी उठे थे? उन्होंने खुद से सवाल किया। उनके शिष्य भाई तो कह रहे थे कि उन्होंने यीशु को जीवित देखा है। लेकिन थॉमस को विश्वास नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था जब तक मैं खुद उनके घावों को ना देख लूं। जब तक मैं अपने हाथ उनके छिद्दे हुए हाथों और
पांवों पर ना रख दूं तब तक मैं नहीं मान सकता। परंतु कहीं ना कहीं उनके दिल के एक कोने में हल्की सी उम्मीद भी थी। थॉमस बचपन से ही ऐसे थे। वे हर बात को तर्क और प्रमाण से समझना चाहते थे। गलील के एक छोटे से गांव में जन्मे थॉमस का पालन पोषण एक सामान्य यहूदी परिवार में हुआ था। उनका मन हमेशा गहरी सोच में रहता था।
थॉमस की यीशु से पहली मुलाक़ात और परिवर्तन की शुरुआत
जब वे किशोर अवस्था में पहुंचे तब उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया और उन्हें बहुत से प्रश्न सताने लगे। क्या मसीहा सच में आएगा? क्या पवित्र भविष्यवाणी पूरी होगी? क्या कोई सच में मृत्यु को हरा सकता है? उनके सवाल कभी खत्म नहीं होते थे। वे एक खोजी आत्मा थे जो हर चीज की सच्चाई जानना चाहता था। जब थॉमस ने पहली बार यीशु के बारे में सुना
तो वे आश्चर्यचकित रह गए। कुछ लोग कह रहे थे कि वे मसीहा हैं तो कुछ उन्हें केवल एक सामान्य शिक्षक मानते थे। लेकिन थॉमस जानना चाहते थे कि सच्चाई क्या है। एक दिन उनके एक मित्र ने उन्हें यीशु से मिलवाया। थॉमस ने जब यीशु को देखा तो उनके भीतर एक अजीब सी शांति का अनुभव हुआ। यीशु की आंखों में अपार प्रेम और शक्ति थी।
The story of apostle Thomas प्रेरित थॉमस की कहानी

जब यीशु ने उनकी ओर देखा तो ऐसा लगा मानो वे उनके मन के हर प्रश्न को पहले से ही जानते थे। थॉमस मेरे पीछे आओ। यीशु ने कहा थॉमस कुछ देर सोचते रहे। वे हमेशा हर चीज को परखने के बाद ही कोई निर्णय लेते थे। लेकिन इस बार उनके भीतर से एक आवाज आई। यह अवसर मत गमवाओ। और वे बाकी 11 शिष्यों के साथ यीशु के अनुयाई बन गए। जैसे-जैसे वे
यीशु के साथ अधिक समय बिताने लगे, वे उनके अद्भुत चमत्कारों को देखते रहे। यीशु ने अंधों को देखने की क्षमता दी, जैसा कि वे देखते थे। ग्रस्त को खड़ा किया। पानी को दाकरस में बदल दिया और यहां तक कि मृतकों को भी जीवित कर दिया।
थॉमस और पुनरुत्थान का चमत्कार
लेकिन थॉमस के मन में अब भी सवाल थे। क्या यह सच में ईश्वरीय शक्ति
है या फिर कोई रहस्य? जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे मर जाएंगे और फिर तीसरे दिन जी उठेंगे तो थॉमस को इस बात पर विश्वास करना कठिन लगा। कोई मरा हुआ व्यक्ति वापस कैसे जीवित हो सकता है? उन्होंने मन ही मन सोचा। फिर वह भयानक दिन आया। यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया गया। थॉमस का पूरा विश्वास टूटने लगा। अगर यीशु सच में मसीहा होते तो वे हमें इस तरह छोड़कर क्यों जाते? थॉमस ने खुद को बाकी शिष्यों से अलग कर लिया। वे अकेले रहने लगे।
अपने विचारों में खो गए। लेकिन तभी एक दिन उनके शिष्य मित्र दौड़ते हुए आए और बोले हमने प्रभु को जीवित देखा है। थॉमस चौंक गए। यह असंभव है। उन्होंने कहा वे अपनी बात पर अडिग रहे। जब तक मैं खुद उनके घावों को ना देख लूं, जब तक मैं अपने हाथों से छू ना लूं, तब तक मैं विश्वास नहीं करूंगा। 8 दिन बाद जब सभी शिष्य एक बंद कमरे में बैठे थे, तभी अचानक वहां कुछ चमत्कार हुआ। दरवाजे बंद थे, लेकिन फिर भी किसी ने प्रवेश किया। यह यीशु थे। वे सीधे थॉमस की ओर मुड़े और बोले, “थॉमस, अपनी उंगली यहां रखो। मेरे हाथ देखो। अपना हाथ मेरे घावों पर रखो और अविश्वास छोड़कर
विश्वास करो। The story of apostle Thomas प्रेरित थॉमस की कहानी
थॉमस की आत्मा में विश्वास की पूर्ण क्रांति
थॉमस स्तब्ध रह गए। उनकी आंखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने कांपते हुए अपने घुटने टेक दिए और कहा हे मेरे प्रभु हे मेरे परमेश्वर यीशु मुस्कुराए और बोले तुमने देखा इसलिए विश्वास किया। धन्य वे हैं जो बिना देखे विश्वास करते हैं। थॉमस के भीतर एक परिवर्तन आ चुका था। अब वे पूरी तरह से विश्वास कर चुके थे कि
यीशु सच में जीवित हैं और वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं। यीशु के पुनरुत्थान को देखने के बाद थॉमस का जीवन पूरी तरह बदल गया था। अब उनके मन में कोई संदेह नहीं था। वे पूरी तरह से विश्वास से भर चुके थे और सुसमाचार को फैलाने के लिए तैयार थे।

यीशु ने अपने शिष्यों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाने और परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने की आज्ञा दी। पतरस,
यरूशलेम और रोम की ओर बढ़े। योहन एशिया माइनर गए और थॉमस को एक स्थान सौंपा गया जो उनके लिए पूरी तरह अपरिचित था।
भारत की ओर पहला कदम: थॉमस की विश्वास यात्रा और बलिदान
भारत भारत थॉमस ने आश्चर्य से कहा वे इस स्थान के बारे में बहुत कम जानते थे। यह दूर अज्ञात और एक अलग संस्कृति वाला देश था। हे प्रभु क्या आप सच में मुझे वहां भेज रहे हैं? उन्होंने प्रार्थना की। लेकिन प्रभु ने उनके मन में शांति दी और थॉमस ने
इसे परमेश्वर की योजना मानकर स्वीकार कर लिया। थॉमस के पास भारत जाने के लिए कोई साधन नहीं था। लेकिन एक व्यापारी जो राजा गोंडो फर्नेस के दरबार में काम करता था उससे उनकी मुलाकात हुई। इस व्यापारी को एक कुशल कारीगर की तलाश थी जो महल के निर्माण में सहायता कर सके। थॉमस को एक मौका मिला और वे उसके साथ भारत के लिए निकल पड़े।
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यह यात्रा लंबी और कठिन थी। उन्होंने समुद्र पार किया। अजनबी भूमि को देखा। नए लोगों से मिले। जब वे भारत पहुंचे तो थॉमस को एक नई दुनिया दिखाई दी। यहां के रीति-रिवाज, परंपराएं और भाषा सब कुछ अलग था। भारत पहुंचने के बाद थॉमस को राजा गोंडो फर्नेस से मिलने का अवसर मिला। राजा एक विशाल महल बनवाना चाहते थे और थॉमस को यह कार्य
सौंपा गया। लेकिन थॉमस ने महल बनाने की बजाय वह सारा धन गरीबों की सेवा में लगा दिया। जब राजा को यह पता चला तो वह क्रोधित हो गए और थॉमस को कारागार में डाल दिया। परंतु कुछ समय बाद राजा के भाई गंभीर रूप से बीमार हो गए और मृत्यु के करीब पहुंच गए।
भारत में विश्वास की किरण: थॉमस की सेवकाई और सुसमाचार
जब उनकी आत्मा स्वर्गीय संसार में पहुंची तो उसे एक दिव्य महल दिखाया गया जो थॉमस की भलाई के कारण तैयार
हुआ था। जब राजा गोंडो फर्नेस को यह पता चला तो उन्होंने थॉमस को जेल से मुक्त किया और सुसमाचार को सुनने लगे। अब थॉमस ने भारत में यीशु का सुसमाचार फैलाना शुरू किया। वे दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में गए। खासकर केरल और तमिलनाडु में उन्होंने वहां के स्थानीय लोगों को यीशु मसीह के प्रेम और उद्धार के बारे में बताया। उनकी
शिक्षा ने कई लोगों के दिलों को छू लिया और कई लोग मसीही विश्वास में आ गए।

उन्होंने कई चर्चों की स्थापना की जिनमें से कुछ आज भी भारत में मौजूद हैं। हालांकि उनका कार्य आसान नहीं था। कई लोगों ने उनका विरोध किया। मंदिरों के पुजारियों और राजा के अधिकारियों ने उनके प्रचार को रोकने की कोशिश की। परंतु थॉमस ने हार नहीं मानी। वे हर परिस्थिति में दृढ़ रहे। प्रेरित थॉमस का प्रचार कार्य तेजी से फैल रहा था। दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में उन्होंने कई लोगों को यीशु मसीह के संदेश से परिचित कराया। उनके उपदेशों से ना केवल आम लोग प्रभावित हुए बल्कि कुछ प्रभावशाली लोग भी उनके अनुयाई बन गए। लेकिन यह परिवर्तन हर किसी को स्वीकार्य नहीं था।
मेलापुर में संत थॉमस का अंतिम बलिदान
मंदिरों के पुजारी और स्थानीय राजा उनके बढ़ते प्रभाव से नाराज थे। उन्हें लगने लगा कि थॉमस उनके पारंपरिक धर्म और समाज की व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। थॉमस को चेतावनी दी गई कि वे अपना प्रचार कार्य बंद कर दें। लेकिन उन्होंने मसीह के संदेश को फैलाना जारी रखा। एक दिन उन्होंने दक्षिण भारत के मेलापुर नामक स्थान पर
यात्रा की जो आज के चेन्नई के पास स्थित था। वहां उन्होंने कुछ लोगों को बपतिस्मा दिया और सुसमाचार सुनाया। लेकिन इसी
दौरान उनके विरोधियों ने उनके खिलाफ एक षड्यंत्र रचा। कुछ सैनिकों को भेजा गया ताकि वे थॉमस को पकड़ कर मार डालें। थॉमस को जब इस खतरे का पता चला तो वे भागे नहीं। उन्होंने प्रार्थना की और परमेश्वर की
इच्छा को स्वीकार किया। सैनिकों ने उन्हें एक पहाड़ी जो आज संत थॉमस माउंट के नाम से जानी जाती है वहां पर घेर लिया।
थॉमस ने अपनी अंतिम प्रार्थना की। हे प्रभु मैंने आपकी सेवा की। मैंने आपके नाम का प्रचार किया। अब मैं अपने प्राण आपको सौंपता हूं। सैनिकों ने अपने भाले उठाए और उन्हें मार डाला। थॉमस की शहादत के बाद उनके
अनुयायियों ने उनके शरीर को सम्मान पूर्वक दफना दिया। आज भी भारत में विशेष रूप से दक्षिण भारत में उनके कार्यों की गहरी छाप देखी जा सकती है। संत थॉमस माउंट चेन्नई जहां उन्हें शहादत मिली। संत थॉमस बेसिलिका जहां उनकी समाधि स्थित है। सेंट थॉमस क्रिश्चियन समुदाय जो उनकी शिक्षा से प्रभावित होकर बना।
संदेह से विश्वास तक की प्रेरणादायक यात्रा
थॉमस की कहानी हमें यह
सिखाती है कि संदेह कोई कमजोरी नहीं है बल्कि यह सत्य की खोज का एक हिस्सा हो सकता है। उन्होंने अपने संदेहों को पीछे छोड़कर विश्वास को अपनाया और फिर अपने जीवन को मसीह के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि सच्चा विश्वास केवल देखने से नहीं बल्कि अनुभव करने से आता है।
इस तरह प्रेरित थॉमस का जीवन हमें
विश्वास, साहस और बलिदान की एक अनमोल सीख देता है। उनकी कहानी केवल अतीत की घटना नहीं है बल्कि आज भी लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा बनी हुई है।
यहाँ प्रेरित थॉमस की कहानी पर आधारित 5 महत्वपूर्ण FAQ (Frequently Asked Questions) दिए गए हैं, जो पाठकों के सामान्य प्रश्नों का उत्तर देने में सहायक होंगे:
❓ 1. प्रेरित थॉमस को “संदेह करने वाला” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
थॉमस को “संदेह करने वाला” इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब अन्य शिष्यों ने उन्हें बताया कि यीशु पुनर्जीवित हो गए हैं, तब उन्होंने तब तक विश्वास नहीं किया जब तक उन्होंने स्वयं यीशु के घावों को न देखा और न छुआ। उनके इस व्यवहार ने उन्हें “Doubting Thomas” की उपाधि दी।
❓ 2. प्रेरित थॉमस भारत क्यों आए थे?
उत्तर:
यीशु मसीह के पुनरुत्थान के बाद, उन्होंने अपने शिष्यों को पूरी दुनिया में सुसमाचार फैलाने के लिए भेजा। थॉमस को भारत भेजा गया, जहां उन्होंने दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में यीशु मसीह का प्रेम और उद्धार का संदेश फैलाया।
❓ 3. थॉमस ने भारत में कौन-कौन से कार्य किए?
उत्तर:
भारत में थॉमस ने कई लोगों को मसीही विश्वास में परिवर्तित किया, चर्चों की स्थापना की, और गरीबों की सेवा की। उन्होंने राजा गोंडो फर्नेस के दरबार में काम किया और अपने व्यवहार से कई लोगों का हृदय जीत लिया।
❓ 4. प्रेरित थॉमस की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर:
मेलापुर (वर्तमान चेन्नई के पास) में प्रचार करते समय उनके विरोधियों ने षड्यंत्र रचा और सैनिकों को भेजकर उन्हें संत थॉमस माउंट पर भाले से मार डाला। उन्होंने अपने प्राण परमेश्वर को समर्पित करते हुए शहादत दी।
❓ 5. प्रेरित थॉमस की शिक्षा और विरासत का क्या प्रभाव है?
उत्तर:
प्रेरित थॉमस की शिक्षा ने दक्षिण भारत में गहरा प्रभाव डाला। आज भी चेन्नई का संत थॉमस माउंट, संत थॉमस बेसिलिका, और सेंट थॉमस क्रिश्चियन समुदाय उनकी विरासत को जीवित रखते हैं। उनकी कहानी विश्वास, साहस और समर्पण की प्रतीक है।
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