
Love story of राजकुमार रितुध्वज
प्राचीन काल में शत्रु जीत नाम के एक धर्मात्मा राजा राज्य करते थे उनकी राजधानी गोमती के तट पर थी राजा का एक बड़ा बुद्धिमान पराक्रमी और सुंदर पुत्र भी था जिसका नाम ऋतु ध्वज था एक दिन नए मिश ण से गालव मुनि राजा शत्रु जीत के दरबार में पधारे उनके साथ एक बहुत ही सुंदर दिव्य अश्व भी था उन्होंने राजा से कहा महाराज हम आपके राज्य में रहकर तपस्या यज्ञ तथा भगवान का भजन करते हैं किंतु एक दैत्य कुछ काल से हमारे इस पवित्र कार्य में बड़ी बाधा डाल रहा है यद्यपि हम उसे अपनी क्रोध अग्नि से भस्म कर सकते हैं तथापि ऐसा करना नहीं चाहते क्योंकि प्रजा
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की रक्षा करना और दुष्टों को दंड देना यह राजा का कार्य है पर फिर भी एक दिन उसके उपद्रव से पीड़ित होकर हमने उसे रोकने का विचार बना लिया था उसी समय यह दिव्य अश्व आकाश से नीचे उतरा और आकाशवाणी हुई मुने यह अश्व बिना किसी रुकावट के समस्त पृथ्वी की परिक्रमा कर सकता है आकाश पाताल पर्वत समुद्र सब जगह आसान से जा सकता है इसलिए इसका नाम कुवलयमाला होकर उस दैत्य का वध करेंगे जो सदा आपको कष्ट दिया करता है इस अश्वर त्न को पाकर इसी के नाम से ही राजकुमार की प्रसिद्धि होगी और वे कोवल्या शव कहलाएंगे इस आकाशवाणी को सुनकर हम आपके पास आए हैं हे
गालव मुनि की आज्ञा और राजकुमार ऋतु ध्वज का पाताल लोक की यात्रा
राजन आप राजकुमार ऋतु ध्वज को राक्षस नाश और धर्म की रक्षा के लिए मेरे साथ आने की आज्ञा दीजिए गाला मुनि के यूं कहने पर राजा शत्रु जीत ने बड़ी प्रसन्नता के साथ एक सैन्य टुकड़ी देकर राजकुमार ऋतु ध्वज को मुनियों की रक्षा के लिए भेज दिया महर्षि के आश्रम पहुंचकर वे सब ओर से उसकी रक्षा करने लगे एक दिन वह मदो मत्त दानव शुक्र का रूप धारण करके वहां आया राजकुमार ऋतु ध्वज उसको देखते ही शीघ्र घोड़े पर सवार हो उसके पीछे दौड़ पड़े और अर्ध चंद्राकार बाण से उस पर प्रहार किया बाण से आहत होकर वह शूक का दैत्य प्राण बचाने के लिए भागा और वृक्षों तथा पर्वत से घिरी
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हुई घनी झाड़ी में घुस गया पर राजकुमार के अश्व ने उसका पीछा ना छोड़ा दैत्य भागता हुआ सहस्र योजन दूर निकल गया और एक स्थान पर बिल के आकार में दिखाई देने वाली अंधेरी गुफा में कूद पड़ा अश्वामी राजकुमार भी उसके पीछे उसी गड्ढे में कूद पड़े राजकुमार ऋतु ध्वज जब अंदर गया तो उसे वहां शुक्राचार्य प्रकाश से परि पूर्ण पाताल लोक का दर्शन हुआ दरअसल दैत्य शुक्र का जिसमें गया था वह कोई गुफा नहीं बल्कि पाताल लोक का द्वार था राजकुमार ने देखा सामने ही इंद्रपुरी के समान एक सुंदर नगर था जिसमें सैकड़ों सोने के महल शोभा पा रहे थे ऋतु
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राजकुमार ऋतु ध्वज की मदालसा से मुलाकात
ध्वज ने भी उत्सुकता वश उसमें प्रवेश किया किंतु वहां उन्हें कोई मनुष्य नहीं दिखाई दिया जिज्ञासा वश वे नगर में घूमने लगे घूमते घूमते अचानक उन्हें एक स्त्री नजर आई जो बड़ी जल्दबाजी में कहीं चली जा रही थी राज कुमार ने उससे कुछ पूछना चाहा किंतु वह आगे बढ़कर चुपचाप एक महल की सीढ़ियों पर चढ़ गई ऋतु ध्वज ने भी घोड़े को एक जगह बांध दिया और जिज्ञासा वश उसी स्त्री के पीछे-पीछे महल में प्रवेश किया भीतर जाकर देखा तो सोने के बने हुए एक विशाल पलंग पर एक अति सुंदर कन्या बैठी है जो अपने सौंदर्य से रति को भी लज्जा रही है दोनों ने एक दूसरे को देखा और दोनों का
मन परस्पर आकर्षित हो गया राजकुमार को देखते-देखते अचानक कन्या मूर्छित हो गई तब पहली स्त्री जिसका पीछा करते हुए राजक इस महल में घुसे थे आई और पंखा लेकर उसे हवा करने लगी जब वह कुछ होश में आई तो राजकुमार ने उसकी मूर्छा का कारण पूछा पर लज्जा वश वह कुछ भी ना बोली और सखी के कान में कुछ फुसफुस आई राजकुमार की तरफ देखते हुए उसकी सखी ने बोलना प्रारंभ किया प्रभु देवलोक में गंधर्व राज विश्वा वसु सर्वत्र विख्यात हैं यह सुंदरी उन्हीं की कन्या मदालसा है एक दिन जब यह अपने पिता के बाग में घूम रही थी तभी पाताल केतु नामक दानव ने अपनी माया फैलाकर इसे र लिया और इसे
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यहां पाताल में पातालकेतु का निवास स्थान
यहां पाताल में ले आया पाताल केतु का निवास स्थान यहां से थोड़ी ही दूर है पाताल केतु ने कहा है मदालसा अगर राजी हो उसकी बात मानती है तो ठीक वरना आगामी त्रयोदशी को वह इसके साथ जबरदस्ती विवाह करेगा पर मेरी सखी उस राक्षस के साथ विवाह करने से पहले मरना पसंद करेगी कुछ दिन पहले ही की बात है जब मदालसा ने आत्महत्या का प्रयत्न किया था उसी समय कामधेनु ने प्रकट होकर कहा बेटी वह नीच दानव तुम्हें नहीं पा सकता मृत्युलोक यानी पृथ्वी लोक में जाने पर उसे जो अपने बाणों से बींद डालेगा वही तुम्हारा पति होगा इतना कह वह अंतरध्यान हो गई फिर अपना परिचय देते हुए
उस स्त्री ने कहा मेरा नाम कुंडला है मैं मदालसा की सखी बंधवानो पुष्कर माली की पत्नी हूं मेरे पति देवासुर संग्राम में शुंभ के हाथों मारे गए तब से मैं तपस्या का जीवन व्यतीत कर रही हूं सखी के स्नेह वश यहां इसे धीरज बंधान आ गई सुना है मृत्य लोक के किसी वीर ने पाताल केतु को अपने बाणों का निशाना बनाया है मैं उसी का पता लगाने गई थी बात सही निकली पर आपको देखकर मेरी सखी के हृदय में प्रेम का संचार हो गया है किंतु माता सुरभी के कथन अनुसार इसका विवाह उस वीर के साथ होगा जिसने पाताल केतु को घायल किया है यही सोचकर दुख के मारे यह मूर्छित हो Love story of राजकुमार रितुध्वज और रानी मदालसा का अनमोल प्रेम
प्रेम और विवाह का संयोग
गई थी जिससे प्रेम हो उसी के साथ विवाह होने पर जीवन सुखमय बीतता है इसका प्रेम तो आपसे हुआ और विवाह दूसरे से होगा यही इसकी चिंता का कारण है अब आप अपना परिचय दीजिए कौन हैं और कहां से आए हैं कुमार ने अपना यथावत परिचय दिया तथा उस दानव को बाण मारने और पाताल में पहुंचने की सारी कथा विस्तार पूर्वक कह सुनाई सब बातें सुनकर मदालसा की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा जिस पुरुष को वह अपना दिल दे बैठी थी उसी से उसकी शादी होगी यह बात उसके लिए आश्चर्य के साथ-साथ बहुत खुशी देने वाली भी थी उसने लज्जित होकर सखी की ओर देखा किंतु कुछ बोल ना सकी कुंडला ने उसका
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मनोभाव जानकर कहा वीरवर आपकी बात सत्य है मेरी सखी का हृदय किसी अयोग्य पुरुष की ओर आ सख्त हो जाए ऐसा हो ही नहीं सकता कमनीय कांति चंद्रमा में और प्रचंड प्रभा सूर्य में ही मिलती है आपके ही लिए गौ माता सुरभी ने संकेत किया था आपने ही दानव पाताल केतु को घायल किया है मेरी सखी आपको पति रूप में प्राप्त करके अपने को धन्य मानेगी कुंडला की बात सुनकर राजकुमार ने कहा मैं पिता की आज्ञा लिए बिना विवाह कैसे कर सकता हूं कुंडला बोली नहीं नहीं ऐसा ना कहिए यह देवकन्या है आपके पिताजी इस विवाह से प्रसन्न होंगे अब उनसे पूछने और आज्ञा लेने का समय नहीं रहगा है आप
विधाता की प्रेरणा से संबंध का स्वीकार
विधाता की प्रेरणा से ही यहां आ पहुंचे हैं अतः यह संबंध स्वीकार कीजिए राजकुमार ने तथास्तु कहकर उसकी बात मान ली कुंडला ने अपने कुलगुरु तुम बुरु का स्मरण किया वे समिधा और कुशा लिए तत्काल वहां आ पहुंचे उन्होंने अग्नि प्रज्वलित करके विधि पूर्वक ऋतु ध्वज और मदालसा का विवाह संस्कार संपन्न किया कुंडला ने अपनी सखी राजकुमार के हाथों सौंप दी और दोनों को अपने-अपने कर्तव्य पालन का उपदेश दिया फिर दोनों से विदा लेकर वह दिव्य गति से अपने अभीष्ट स्थान पर चली गई ऋतु ध्वज ने मदालसा को घोड़े पर बिठाया और स्वयं भी उस पर सवार हो पाताल लोक से जाने लगे इतने
पाताल केतु से युद्ध और विजय
में पाताल केतु को यह समाचार मिल गया और वह दानवों की विशाल सेना लिए राजकुमार के सामने आ डटा राजकुमार भी बड़े पराक्रमी थे उन्होंने हंसते-हंसते बाणों का जालसा फैला दिया और त्वा नामक दिव्य अस्त्र का प्रयोग करके पाताल केतु सहित समस्त दानवों को भस्म कर डाला इसके बाद वे अपने पिता के नगर में जा पहुंचे घोड़े से उतरकर उन्होंने माता-पिता को प्रणाम किया मदालसा ने भी सास ससुर के चरणों में मस्तक झुकाया ऋतु ध्वज के मुख से सब समाचार सुनकर माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने पुत्र और पुत्र वधु को हृदय से लगाकर उनका मस्तक सूंघ मदालसा पति गृह में बड़े सुख
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से रहने लगी सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था तदनंतर एक दिन राजा शत्रु जीत ने राजकुमार ऋतु ध्वज से कहा बेटा तुम प्रतिदिन प्रातः काल इस अश्व पर सवार हो ब्राह्मणों की रक्षा के लिए पृथ्वी पर चारों दिशाओं में घूमते रहो राजकुमार ने बहुत अच्छा कहकर पिता की आज्ञा शिरोधार्य की वे प्रतिदिन पूर्वाहन में ही पृथ्वी की परिक्रमा करके पिता के चरणों में नमस्कार करते थे एक दिन घूमते हुए वे यमुना तट पर गए वहां पाताल केतु का छोटा भाई ताल केतु आश्रम बनाकर मुनि के वेश में रहता था राजकुमार ने मुनि जानकर उसे प्रणाम किया वह बोला राजकुमार मैं धर्म के लिए यज्ञ
तालकेतु की माया और राजकुमार का बलिदान
करना चाहता हूं किंतु मेरे पास दक्षिणा नहीं है तुम अपने गले का यह आभूषण दे दो और यहीं रहकर मेरे आश्रम की रक्षा करो मैं जल के भीतर प्रवेश करके वरुण देवता की स्तुति कर जल्दी ही लौटूंगा इतना कहकर ताल केतु जल में घुसा और माया से अदृश्य हो गया राजकुमार उसके आश्रम पर ठहर गए मुनि वेष धारी ताल केतु राजा शत्रु जीत के नगर में जा पहुंचा वहां जाकर उसने कहा राजन आपके पुत्र दैत्यों के साथ युद्ध करते-करते मारे गए यह उनका आभूषण है यूं कहकर वह जैसे आया था उसी प्रकार लौट गया राजकुमार की मृत्यु का दुख पूर्ण समाचार सुनकर नगर में हाहाकार मच गया राजा रानी
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तथा रानीवास की स्त्रियां शोक से व्याकुल होकर विलाप करने लगी जब रानी मदालसा ने उनके गले के आभूषण को देखा और मृत्यु का समाचार सुना तभी रानी ने भी अपने प्राणों को तुरंत त्याग दिया राजमहल का शोक दुगना हो गया राजा शत्रु जीत ने किसी प्रकार धैर्य धारण किया और रानी तथा नगर के अन्य लोगों को भी समझा बुझाकर शांत कराकर रानी मदालसा का दाह संस्कार किया उधर ताल केतु यमुना जल से निकलकर राजकुमार के पास गया और कृतज्ञता प्रकट करते हुए उसने उनको घर जाने की आज्ञा दे दी राज कुमार ने तुरंत अपने नगर में पहुंचकर पिता माता को प्रणाम
पुत्र का पुनर्मिलन और प्रतिज्ञा
किया पुत्र को जिंदा और बिल्कुल सही सलामत देख उन्होंने उसको छाती से लगा लिया उनकी नेत्रों से आंसू बहने लगे जब राजकुमार ऋतु ध्वज को सब बातें मालूम हुई तो बड़ी जोरों से हृदय विधारभा से उनका अंतर हृदय रो उठा राजकुमार ऋतु ध्वज की दुनिया सुनी हो गई उन्होंने मदालसा के लिए जलांस दी और यह प्रतिज्ञा की मैं मृग के समान विष नेत्रों वाली गंधर्व राजकुमारी मदालसा के अतिरिक्त दूसरी किसी स्त्री के साथ भोग नहीं करूंगा यह मैंने सर्वथा सत्य कहा है प्रतिज्ञा कर राजकुमार ऋतु ध्वज ने स्त्री संबंधी भोग से मन हटा लिया और संवत मित्रों के साथ मन
बहलाने लगे इसी समय नागराज अश्वत के दो पुत्र मनुष्य रूप में पृथ्वी पर घूमने के लिए निकले घूमते घूमते उनकी राजकुमार ऋतु ध्वज के साथ मुलाकात हुई ऋतु ध्वज के सरल और मैत्रीपूर्ण स्वभाव के कारण जल्दी ही उनकी आपस में में प्राग मित्रता हो गई उनका आपस का प्रेम इतना बढ़ गया कि नाग कुमार एक क्षण भी उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे वे दिन भर पाताल से गायब रहते थे एक दिन नागराज के पूछने पर उन्होंने ऋतु ध्वज का सारा वृत्तांत पिता के सामने कह सुनाया और बोले पिताजी हमारे मित्र ऋतु ध्वज मदालसा के सिवा दूसरी किसी स्त्री को स्वीकार ना करने की प्रतिज्ञा कर चुके हैं
मदालसा को पुनर्जीवित करने का प्रयास
मदालसा पुनः जीवित हो सके ऐसा कोई उपाय करें नागराज बोले उद्योग से सब कुछ संभव है प्राणी को कभी निराश नहीं होना चाहिए यूं कहकर नागराज अश्वत हिमालय पर्वत के पलक्षा व तरण तीर्थ में जो सरस्वती का उद्गम स्थान है जाकर अपने पुत्रों के मित्र राजकुमार ऋतु ध्वज के हितार्थ दुष्कर तपस्या करने लगे सरस्वती देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया और वर मांगने को कहा अश्वत बोले देवी मैं और मेरा भाई कंबल दोनों संगीत शास्त्र के पूर्ण मर्मज्ञ हो जाए सरस्वती देवी तथास्तु कहकर अंतरध्यान हो गई अब दोनों भाई कंबल और अश्वद कैलाश पर्वत पर गए और
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भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए ताल स्वर के साथ उनके गुणों का गान करने लगे अति सुरीली वाणी में अपनी वंदना सुन महादेव जी प्रकट हुए और प्रसन्न होकर कहा वर मांगो तब कंबल और अश्वत ने महादेव जी को प्रणाम कर कहा भगवन कुवल शव की पत्नी मदालसा जो अब मर चुकी है पहले की ही अवस्था में मेरी कन्या के रूप में प्रकट हो उसे पूर्व जन्म की बातों का स्मरण बना रहे पहले ही जैसी उसकी कांति हो तथा वह योगिनी एवं योग विद्या की जननी होकर मेरे घर में प्रकट ट हो महादेव जी ने कहा नागराज तुम श्राद्ध का दिन आने पर यही कामना लेकर पितरों का तर्पण करना और
श्राद्ध में दिए हुए मध्यम पिंड को शुद्ध भाव से खा लेना इससे वह तत्काल ही तुम्हारे मध्यम फण से प्रकट हो जाएगी नागराज ने वैसा ही किया सुंदरी मदालसा उनके मध्यम फण से प्रकट हो गई नागराज ने उसे महल के भीतर स्त्रियों के संरक्षण में रख दिया यह रहस्य उन्होंने किसी पर प्रकट नहीं किया तदनंतर नागराज अश्वत ने अपने पुत्रों से कहा तुम राज कुमार ऋतु ध्वज को यहां बुला लाओ नाग कुमार उन्हें लेकर गोमती के जल में उतरे और वहीं से खींच करर उन्हें पाताल में पहुंचा दिया वहां वे अपने असली रूप में प्रकट हुए ऋतु ध्वज नागलोक की शोभा देखकर चकित हो उठे
मदालसा का पुनर्मिलन और अमरता
उन्होंने नागराज को प्रणाम किया नागराज ने आशीर्वाद देकर ऋतु ध्वज का भलीभांति स्वागत सत्कार किया भोजन के पश्चात सब लोग एक साथ बैठकर प्रेमा लाप करने लगे तब नागराज ने मदालसा के पुर्ण जीवित होने की सारी कथा उन्हें कह सुनाई मदालसा के पुनर्जीवित होने की खबर सुनकर ऋतु ध्वज की खुशी की कोई सीमा नहीं रही उन्होंने नागराज से हर्षो उत्साहित होकर शीघ्र मदालसा से मिलाने का नम्र निवेदन किया राजकुमार का हर्श उल्लाह देख नागराज ने बिना किसी देरी के उनको मदालसा से मिलवा दिया राजकुमार ऋतु ध्वज और रानी मदालसा एक दूसरे को देख भाव विभोर हो उठे और एक
दूसरे को बहते नेत्रों के साथ गले लगा लिया ऋतु ध्वज के स्मरण करते ही उनका प्यारा अश्व वहां आ पहुंचा नागराज को प्रणाम कर राजकुमार रानी मदालसा के के साथ अश्व पर आरूढ़ हुए और अपने नगर के लिए रवाना हो गए वहां पहुंचकर उन्होंने मदालसा के जीवित होने की कथा सुनाई मदालसा ने भी सास ससुर के चरणों में प्रणाम किया नगर में बड़ा भारी उत्सव मनाया गया मार्कंडेय पुराण के अनुसार रानी मदालसा के चार पुत्र हुए महासती मदालसा ने अपने पुत्रों का उद्धार करके स्वयं भी पति के साथ परमात्मा चिंतन में मन लगाया और थोड़े ही समय में मोक्ष स्वरूप परम पद प्राप्त कर लिया
मदालसा अब इस लोक में नहीं है किंतु उसका नाम सदा के लिए अमर हो गया
यहां आपके लिए “प्राचीन काल में शत्रु जीत नामक धर्मात्मा राजा और उनके पुत्र ऋतु ध्वज” से संबंधित पाँच सामान्य पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) दिए गए हैं
1. राजा शत्रु जीत का नाम क्यों प्रसिद्ध था?
- राजा शत्रु जीत एक धर्मात्मा और न्यायप्रिय शासक थे, जिन्होंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कार्य किया और शत्रुओं से संघर्ष करके धर्म की रक्षा की। उनका राज्य गोमती के तट पर था और उनका पुत्र ऋतु ध्वज भी बहुत पराक्रमी था।
2. कुवलयमाला नामक अश्व की विशेषता क्या थी?
- कुवलयमाला एक दिव्य अश्व था, जिसे गालव मुनि ने राजा शत्रु जीत को दिया था। यह अश्व आकाश से पृथ्वी की परिक्रमा कर सकता था और पाताल तक आसानी से यात्रा कर सकता था। इसी अश्व के माध्यम से राजकुमार ऋतु ध्वज ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें दैत्य का वध और मुनियों की रक्षा शामिल थी।
3. राजकुमार ऋतु ध्वज ने पाताल लोक में क्या देखा?
- जब राजकुमार ऋतु ध्वज पाताल लोक पहुंचे, तो उन्होंने वहां एक सुंदर नगर देखा, जिसमें सोने के महल थे। उन्होंने वहां मदालसा नामक एक कन्या से मुलाकात की, जो गंधर्व राज विश्वा वसु की पुत्री थी और पाताल केतु नामक राक्षस द्वारा बंदी बनाई गई थी।
4. राजकुमार ऋतु ध्वज और मदालसा का विवाह कैसे हुआ?
- राजकुमार ऋतु ध्वज और मदालसा के बीच प्रेम हो गया। मदालसा ने पहले आत्महत्या का प्रयास किया था, लेकिन भगवान कामधेनु ने उसे जीवनदान दिया। अंततः, ऋतु ध्वज ने मदालसा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और दोनों का विवाह विधिपूर्वक हुआ।
5. मदालसा का पुनर्जीवित होना कैसे संभव हुआ?
- मदालसा की मृत्यु के बाद, नागराज अश्वत और कंबल ने कठिन तपस्या की। उनके तप के कारण, महादेव जी ने मदालसा को पुनः जीवित किया। फिर उसे पाताल लोक में एक सुरक्षित स्थान पर रखा गया, और बाद में राजकुमार ऋतु ध्वज को मदालसा से पुनः मिलाया गया।
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