
True Story of Prince Chandrahas राजकुमार चंद्रहास की सत्य कथा
True Story of Prince Chandrahas राजकुमार चंद्रहास की सत्य कथा
केरल देश में एक मेधावी नामक राजा राज्य करते थे शत्रुओं ने उनके देश पर चढ़ाई की युद्ध में महाराज मारे गए पति की मृत्यु के दुख में रानी भी उनके साथ सती हो गई राजा का इकलौता पुत्र चंद्रहास अभी पाछ साल का ही था दाई ने चुपके से उन्हें नगर से निकाला और कुंतलु ले गई वह स्वामी भक्ता दाई मेहनत मजदूरी करके राजकुमार का पालन पोषण करने लगी चंद्रहास बड़े ही सुंदर थे और बहुत सरल तथा विनय थे के सभी स्त्री पुरुष ऐसे भोले सुंदर बालक से स्नेह करते थे कहते हैं जो अनाथ हो जाता है जिसका कोई नहीं होता उसके स्वयं भगवान होते हैं उन्हीं की कृपा से एक दिन नारद
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जी घूमते हुए कुंतलु पहुंचे बालक को एक शाल ग्राम की मूर्ति देकर नाम मंत्र बता गए नन्हा बालक देवर्षि की कृपा से हरिभक्त हो गया अब जिस समय वह अपने आप को भूलकर अपने कोमल कंठ से प्रभु गान करते हुए नृत्य करता देखने वाले मुग्ध हो उठते कतलपुर के राजा परम भगवत भक्त एवं संसार के विषय से पूरे विरक्त थे विरक्त यानी भोग विलास से दूर रहने वाला उनका कोई पुत्र नहीं था केवल चंपक मालिनी नाम की एक कन्या थी महर्षि गालव को राजा ने अपना गुरु बनाया था और गुरु के उपदेश अनुसार वे भगवान के भजन में ही लगे रहते थे राज्य का पूरा प्रबंध मंत्री दृष्ट बुद्धि करता था
मंत्री दृष्ट बुद्धि का व्यक्तित्व और उनका जीवन
मंत्री की अलग से भी बहुत बड़ी संपत्ति थी राजा तो भगवत भक्ति में रहते थे तो एक प्रकार से कुंतलु के शासक मंत्री दृष्ट बुद्धि ही थे उनका मदन नाम का योग्य पुत्र था जो उनकी राज कार्य में सहायता करता था मंत्री दृष्ट बुद्धि की विषयात सुंदर कन्या भी थी मंत्री की रुचि केवल राज कार्य और धन एकत्र करने में ही थी किंतु उनका पुत्र मदन भगवान भक्त था वह साधु संतों की सेवा करता था इसीलिए मंत्री के महल में जहां विलास तथा राग रंग चलता था वहीं कभी-कभी संत भी एकत्र हो जाते थे भगवान की पावन कथा भी होती थी इन कार्यों में रुचि ना होने पर भी मंत्री दृष्ट
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बुद्धि अपने पुत्र के कारण कुछ ना बोलते एक दिन मंत्री के महल में ऋषि गण बैठे थे भगवान की कथा हो रही थी उसी समय सड़क पर भवन के ऋषियों के कहने पर मदन ने सबको वहीं बुला लिया, जहां सामने से भगवान का नाम कीर्तन करते हुए बच्चों की मंडली निकली। लिया चंद्रहास के साथ बालक नाचने गाने लगे मंत्री दृष्ट बुद्धि भी इसी समय वहां आ गए मुनियों ने तेजस्वी बालक चंद्रहास को तन्मय होकर कीर्तन करते देखा तो वे मुग्ध हो गए कीर्तन समाप्त होने पर स्नेह पूर्वक समीप बुलाकर ऋषियों ने उन्हें बैठा लिया
एक अज्ञात कुल शल राह का भिखारी बालक मेरी संपत्ति का स्वामी होगा
और उनके शरीर के लक्षणों को देखने लगे ऋषियों ने चंद्रहास के शारीरिक लक्षण देखकर दृष्ट बुद्धि से कहा मंत्रि व तुम इस बालक का प्रेम पूर्वक पालन करो इसे अपने घर रखो यही तुम्हारी संपूर्ण संपत्ति का स्वामी तथा इस देश का नरेश होगा एक अज्ञात कुल शल राह का भिखारी बालक मेरी संपत्ति का स्वामी होगा यह बात दृष्ट बुद्धि के हृदय में तीर सी लगी वे तो अपने लड़के को राजा बनाने का स्वप्न देख रहे थे अब एक भिक्षुक सा लड़का उनकी सारी इच्छाओं को नष्ट कर दे यह उन्हें सहन नहीं हो रहा था उन्होंने किसी से कुछ कहा नहीं पर सब लड़कों को मिठाई देने के बहाने घर के भीतर
चंद्रहास की पूजा और वधि की भावनाएँ
ले गया मिठाई देकर दूसरे लड़कों को तो उन्होंने विदा कर दिया केवल चंद्रहास को रोक लिया एक विश्वासी वधि को बुलाकर उसे चुपचाप समझाकर सकार का भारी लोभ देकर उसके साथ चंद्रहास को भेज दिया चंद्रहास ने जब देखा कि मुझे यह सुनसान जंगल में रात के समय लाया है तब इसका उद्देश्य समझकर कहा भाई तुम मुझे भगवान की पूजा कर लेने दो तब मारना धिक ने अनुमति दे दी चंद्रहास ने शाल ग्राम जी की मूर्ति निकालकर उनकी पूजा की और उनके सम्मुख गदगद कंठ से स्तुति करने लगा भोले बालक का सुंदर रूप मधुर स्वर तथा भगवान की भक्ति देखकर वधि की आंखों में भी आंसू आ
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गए उसके हृदय में एक निरपराध बालक को मारने की बात सोचकर एक टीस उठी परंतु उसे मंत्री का भय भी था उसने देखा कि चंद्रहास के एक पैर में छह अंगुलियां हैं धिक ने तलवार से जो एक अंगुली अधिक थी उसे काट लिया और बालक को वहीं छोड़कर वह लौट गया वधि ने महल जाकर जब दृष्ट बुद्धि को वह अंगुली दिखाई तो वह अंगुली देखकर बहुत प्रसन्न हुए उन्हें लगा कि अपने बुद्धि कौशल से ऋषियों की अमोघ वाणी मैंने झूठी कर दी कुंतलु राज्य के अधीन एक छोटी सी रियासत थी थी चंदनपुर वहां के नरेश कुलिक किसी कार्य से बड़े सवेरे वन की ओर से घोड़े पर चढ़े जा रहे थे तभी एकाएक उनके
चंद्रहास का चंदनपुर के युवराज के रूप में अभिषेक
कानों में बड़ी मधुर भगवन नाम कीर्तन की ध्वनि पड़ी कटी अंगुली की पीड़ा से भूमि में पड़े पड़े चंद्रहास करुण कीर्तन कर रहे थे राजा ने कुछ दूर से बड़े आश्चर्य से देखा कि एक छोटा देवकुमार जैसा बालक भूमि पर पड़ा है उसके चारों ओर अद्भुत प्रकाश फैला है राजा की कोई संतान नहीं थी उन्होंने सोचा कि भगवान ने मेरे लिए यही यह वैष्णव देवकुमार भेजा है घोड़े से उतरकर बड़े स्नेह से चंद्रहास को उन्होंने गोद में उठाया उनके शरीर की धूल पहुंची और उन्हें अपने राजभवन में ले आए चंद्रहास अब चंदनपुर के युवराज हो गए यज्ञोपवित संस्कार होने के पश्चात गुरु के यहां रहकर
उन्होंने वेद वेदांग तथा शास्त्रों का अध्ययन किया राजकुमार ने अस्त्र शस्त्र चलाना तथा नीति शास्त्र आदि सीखा अपने सद्गुणों से वे राज परिवार के लिए प्राणों के समान प्रिय हो गए समय बीतने के साथ राज कुमार चंद्रहास अब एक हट्टा कट्टा सुंदर नौजवान बन चुका था राजा कुलिक ने अब उन्हीं पर राज्य का भार छोड़ दिया राजकुमार चंद्रहास के प्रबंध से छोटी सी रियासत हरि गुणगान से पूर्ण हो गई राज्य में अब कोई दुखी नहीं था चंदनपुर रियासत की ओर से कुंतल परपुर को 10000 स्वर्ण मुद्राएं कर यानी टैक्स के रूप में प्रतिवर्ष दी जाती थी अबकी बार चंद्रहास
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चंदनपुर आगमन और चंद्रहास से पहली मुलाकात
उन मुद्राओं के साथ और भी बहुत से धन रत्ना आदि उपहार भी भेजे दृष्ट बुद्धि ने जब चंदनपुर राज्य के ऐश्वर्य एवं वहां के युवराज के सुप्रबथा सुनी तब वह स्वयं वहां की व्यवस्था देखने चंदनपुर गए राजा कुलिक तथा राजकुमार ने उनका खुले हृदय से स्वागत किया यहां आकर जब दृष्ट बुद्धि ने चंद्रहास को देखा तो वह उसके तेज से ही पहचान गया कि यह तो वही बालक है यह बच कैसे गया उनका हृदय व्याकुल हो गया एक बार फिर मंत्री दृष्ट बुद्धि ने राजकुमार को मारने का षड्यंत्र रचा और एक पत्र देकर कहा युवराज बहुत ही आवश्यक काम है और दूसरे किसी पर मेरा विश्वास नहीं तुम
स्वयं यह पत्र लेकर कुंतल पुर जाओ और ध्यान रहे मार्ग में पत्र खुलने ना पाए कोई भी इस बात को ना जाने इसे सीधे मदन को ही देना चंद्रहास घोड़े पर चढ़कर अकेले ही पत्र लेकर कुंतलु को चल पड़े दिन के तीसरे पहर वे कुंतलु के पास वहां के राजा के बगीचे में पहुंचे बहुत प्यासे और थके थे अतः घोड़े को पानी पिलाकर एक और बांध दिया और स्वयं सरोवर में जल पीकर एक वृक्ष की शीतल छाया में लेट गए लेटते ही उन्हें निद्रा आ गई उसी समय उस बगीचे में राजकुमारी चंपक मालिनी अपनी सखियों तथा मंत्री कन्या विषयात घूमने आई थी संयोगवश अकेली विषयात चली आई जहां चंद्रहास सोए थे
पत्र में मंत्री का क्रूर आदेश और राजकुमारी का दुख
इस परम सुंदर युवक को देखकर वह मुग्ध हो गई और ध्यान से उसे देखने लगी उसे निद कुमार के हाथ में एक पत्र दिख पड़ा कुतूहल वश उसने धीरे से पत्र खींच लिया और पढ़ने लगी पत्र उसके पिता का था उसमें मंत्री ने अपने पुत्र को लिखा था इस राजकुमार को पहुंचते ही विष दे देना इसके कुल शूरत विद्या आदि का कुछ भी विचार ना करके मेरे आदेश का तुरंत पालन करना मंत्री की कन्या को एक बार पत्र पढ़कर बड़ा दुख हुआ उसकी समझ में ही ना आया कि पिताजी ऐसे सुंदर देवकुमार को क्यों विश देना चाहते हैं सहसा उसे लगा कि पिताजी इससे मेरा विवाह करना चाहते हैं वे मेरा नाम लिखते समय भूल
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से या अक्षर छोड़ गए उसने भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट की कि पत्र मेरे हाथ लगा कहीं दूसरे को मिलता तो कितना अनर्थ होता अपने नेत्र के काजल से उसने पत्र में विष के आगे उससे सटाकर या लिख दिया जिससे विषयात देना पढ़ा जाने लगा पत्र को बंद करके निद्रा त्यों रखकर वह शीघ्रता से चली गई चंद्रहास की जब निद्रा खुली तब वे शीघ्रता पूर्वक मंत्री के घर गए मंत्री के पुत्र मद ने पत्र देखा और ब्राह्मणों को बुलाकर उसी दिन गोधूली मुहूर्त में चंद्रहास से उन्होंने अपनी बहन का विवाह कर दिया विवाह के समय कुंतलु नरेश स्वयं भी पधारे चंद्रहास को देखकर उन्हें लगा कि मेरी other story
राजा कुलिक का वैराग्य और विवाह की तैयारी
कन्या के लिए भी यही योग्य वर है उन्होंने चंदनपुर के इस युवराज की विद्या बुद्धि शूरत आदि की प्रशंसा बहुत सुन रखी थी अब राजपुत्र का विवाह भी चंद्रहास से करने का उन्होंने निश्चय कर लिया दृष्ट बुद्धि तीन दिन बाद लौटे वहां की स्थिति देखकर वे क्रोध के मारे पागल हो गए उन्होंने सोचा भले मेरी कन्या विधवा हो जाए पर इस शत्रु का वध मैं अवश्य करा के रहूंगा द्वेष से अंधे हुए हृदय की यही स्थिति होती है अपने हृदय की बात मंत्री ने किसी से नहीं कही नगर से बाहर पर्वत पर एक देवी का मंदिर था दृष्ट बुद्धि ने एक क्रूर वधि को वहां यह
समझाकर भेज दिया कि जो कोई देवी की पूजा करने आए उसे तुम मार डालना मंत्री ने चंद्रहास को कहा कि अब तुम मेरे दामाद हो गए हो हमारी कुल प्रथा के अनुसार शादी के बाद भवानी जी की पूजा की जाती है मंत्री ने चंद्रहास को सायंकाल बिल्कुल अकेले जाकर देवी की पूजा करने का आदेश दिया इधर कुंतलु नरेश के मन में वैराग्य हुआ वह जल्द से जल्द अपनी पुत्री का विवाह चंद्रहास के साथ कराना चाहते थे राजा ने मंत्री पुत्र मदन को बुलाकर कहा बेटा तुम्हारे बहनोई चंद्रहास बड़े सुयोग्य हैं उन्हें भगवान ने ही यहां भेजा है मैं आज ही उनके साथ राजकुमारी चंपक मालिनी का बह
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कर देना चाहता हूं प्रातः काल उन्हें सिंहासन पर बैठाकर मैं तपस्या करने वन चला जाऊंगा तुम उन्हें तुरंत मेरे पास भेज दो इधर राजकुमार चंद्रहास पूजा की सामग्री लिए मंदिर की ओर जा रहे थे तभी मंत्री पुत्र मदन राजा का संदेश लिए बड़ी उमंग से उन्हें मार्ग में मिले मदन ने पूजा का पात्र यह कहकर स्वयं ले लिया कि मैं देवी की पूजा कराता हूं आपको महाराज ने तुरंत बुलाया है और चंद्रहास को उसने राजभवन भेज दिया जिस मुहूर्त में दृष्ट बुद्धि ने चंद्रहास के वध की व्यवस्था की थी उसी मुहूर्त में राजभवन में चंद्रहास का राजकुमारी के साथ विवाह हो रहा था मंत्री
कन्या के लिए भी यही योग्य वर है
पुत्र मदन जब पूजा का थाल लेकर देवी के मंदिर में पहुंचा धिक ने उसी समय उसका सिर काट डाला धृष्ट बुद्धि को जब पता लगा कि चंद्रहास तो राजकुमारी से विवाह करके राजा हो गए उनका राज्याभिषेक हो गया और मारा गया मेरा पुत्र मदन तब व्याकुल होकर वे देवी के मंदिर में दौड़े गए पुत्र का शरीर देखते ही शोक के कारण उन्होंने तल निकालकर अपना सिर भी काट लिया संयोग वश दृष्ट बुद्धि को उन्मत की भाति दौड़ते समय राजकुमार चंद्रहास ने देख लिया था वे भी तुरंत अपना घोड़ा ले उसी दिशा में चल दिए जिधर कुछ समय पहले ही उसका ससुर मंत्री दृष्ट बुद्धि गया था वे तनिक देर में ही
मंदिर में आ गए सारा माजरा समझ अपने लिए दो प्राणियों की मृत्यु देखकर चंद्रहास को बड़ा क्लेश हुआ उन्होंने निश्चय करके अपने बलिदान के लिए तलवार खींची उसी समय मां भवानी साक्षात प्रकट हो गई उन्होंने कहा बेटा यह दृष्ट बुद्धि बड़ा दुष्ट था और सदा तुझे मारने के प्रयत्न में लगा रहता था इसका पुत्र मदन सज्जन और भगवत भक्त था किंतु उसने तेरे विवाह के समय तुझे अपना शरीर दे डालने का संकल्प किया था अतः वह भी इस प्रकार उर्ण हुआ अब तू वरदान मांग चंद्रहास ने हाथ जोड़कर कहा माता आप प्रसन्न है तो ऐसा वर दें जिससे श्री हरि में मेरी अविचल भक्ति जन्म जन्मांतर तक story
बनी रहे और इस दृष्ट बुद्धि के अपरा ध को आप क्षमा कर दें मेरे लिए मरने वाले इन दोनों को आप जीवित कर दें देवी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गई धृष्ट बुद्धि और मदन तुरंत उठ खड़े हुए सारे वृतांत का पता चलने पर मंत्री दृष्ट बुद्धि राजकुमार चंद्रहास के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा राजकुमार चंद्रहास ने उन्हें उठाया और अपने हृदय से लगा लिया मंत्री अब पूरी तरह बदलकर भगवान के परम भक्त हो गए मदन तो भक्त था ही उसने चंद्रहास का बड़ा आदर किया सब मिलकर सानंद घर लौ टाए निष्कर्ष माफी दया और भक्ति जीवन के असली मूल्य हैं जो इंसान को उसकी आंतरिक शक्तियों से
यहाँ पर “चंद्रहास” की कहानी के बारे में 10 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ) दिए जा रहे हैं:
1. चंद्रहास कौन था?
चंद्रहास एक युवा और सुंदर राजकुमार था, जिसे भगवान की कृपा से कई कठिनाइयों और विपत्तियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वह हमेशा भगवान की भक्ति में समर्पित रहा।
2. चंद्रहास की दादी ने उसे कहाँ भेजा था?
चंद्रहास के पिता की मृत्यु के बाद उसकी दादी ने उसे कुंतलु भेज दिया, जहां उसकी देखभाल एक भक्ति में लीन दाई ने की।
3. नारद जी ने चंद्रहास को क्या दिया?
नारद जी ने चंद्रहास को शाल ग्राम की एक मूर्ति दी और उसे नाम मंत्र बताया, जिससे वह भगवान के प्रति भक्ति में तल्लीन हो गया।
4. चंद्रहास का कीर्तन सुनकर किसे क्या महसूस हुआ?
जब चंद्रहास ने भगवान का कीर्तन किया, तो उसके साथ अन्य बालक भी नृत्य करने लगे। इसे देखकर ऋषि गण और मंत्री दृष्ट बुद्धि के पुत्र मदन भी प्रभावित हुए और चंद्रहास की भक्ति की सराहना की।
5. दृष्ट बुद्धि का चंद्रहास से क्या संबंध था?
दृष्ट बुद्धि मंत्री था, जो चंद्रहास के जीवन को खतरे में डालने की कई बार कोशिश करता रहा। उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उसने चंद्रहास को नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया।
6. चंद्रहास को मारने की योजना किसने बनाई?
मंत्री दृष्ट बुद्धि ने चंद्रहास को मारने के लिए एक वधि को भेजा था, लेकिन वधि के हृदय में दया उत्पन्न हुई और उसने चंद्रहास को बचा लिया।
7. चंद्रहास को जंगल में किसने भेजा था?
मंत्री दृष्ट बुद्धि ने चंद्रहास को एक पत्र देकर उसे कुंतलु भेजने की योजना बनाई, और इस पत्र में उसे मारने का आदेश था।
8. चंद्रहास का राज्याभिषेक किसने किया?
चंद्रहास का राज्याभिषेक चंदनपुर के राजा कुलिक ने किया, जिन्होंने उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया और उसे युवराज बना दिया।
9. चंद्रहास का विवाह किससे हुआ?
चंद्रहास का विवाह राजकुमारी चंपक मालिनी से हुआ, जो कुंतलु राज्य की एक सुंदर कन्या थी। इस विवाह के बाद चंद्रहास चंदनपुर का राजा बन गया।
10. दृष्ट बुद्धि और मदन का क्या हुआ?
अंत में, जब चंद्रहास की भक्ति और भगवान की कृपा से दोनों की मृत्यु हो गई, तो मां भवानी ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। दृष्ट बुद्धि ने अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को स्वीकार किया।
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