
Ek mahaan samrat ki kahani
Ek mahaan samrat ki kahani
एक महान सम्राट और उसके बेटे की कहानी : यह बात बहुत पुरानी है एक सम्राट बहुत ही पराक्रमी और बुद्धिमान था उसकी प्रजा बहुत ही खुश और सम्राट के कामों से संतुष्ट थी पूरे राज्य में सम्राट की वहीं होती ये सब उसे अब तक का सबसे महान सम्राट समझती उस सम्राट का एक बेटा भी था जो कि अपने पिता की तरह महान बनना चाहता था लेकिन श्रेष्ठ और

अच्छा उत्तराधिकारी बनने की कोशिश में वह अक्सर कोई न कोई गलती कर बैठता और फिर यह सोचकर चिंतित रहता कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते होंगे वह अक्सर अपनी गलतियों के लिए खुद को कोसता रहता और अपना ज्यादातर समय इसी चिंता में बता देता हूं कि लोग क्या कहेंगे अपन Ek mahaan samrat ki kahani
भिक्षुओं ने पूरे ध्यान से
वजह से वह कई बार अशांत और हताश हो जाता है है उसी राज्य में एक बहुत ही प्रसिद्ध है बोध भिक्षु विरा करते थे जो कि अपनी बुद्धिमता के लिए जाने जाते थे उनके बहुत से अच्छे से भी थी एक दिन सुबह-सुबह राजकुमार उन बोध भिक्षु के पास पहुंच गया और जाकर अपना सारा हाल सुनाया भिक्षुओं ने पूरे ध्यान से राजकुमार की बात सुनिए फिर अंत में राजकुमार ने
वृक्षों से कहा आप मुझे कोई ऐसा तरीका बताइए जिससे मैं अपने मन को वश में कर सकूं अपने मन को शांत कर सकूं रघु दीक्षित ने कहा राजकुमार यह काम बड़ा कठिन है कि आप इसकी कीमत चुकाने के लिएतैयार हैं कि यह सब राजकुमारी बड़े घमंड भरे स्वर में कहा मैं कोई व्यक्ति मर चुका सकता हूं आखिर में सम्राट का पुत्र हूं यह बोध भिक्षु ने कहा नहीं तुम गलत समझे मैं धन की बात नहीं कर रहा बल्कि मैं तो तुम्हें कुछ काम दूंगा जो तुम्हें
बिना कोई प्रश्न पूछे बस करना पड़ेगा राजकुमार ने कहा आप जो भी कहेंगे मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं यह सुन बोध भिक्षु ने कहा तुम अकेले पैदल बाजार जाओगे और कबाड़ी की दुकान से कुछ पुराना लोहा खरीद कर लूंगी राजकुमार जो आज से पहले कभी भी राजमहल के बाहर पैदल ही गया था जिसके एक इशारे पर रथों की लाइन लग जाती थी नौकर जिसकी
राजकुमार का मन तो चिंता में
आगे-पीछे घूमते थे उसने कहा कि हां मैं इस काम के लिए अपने किसी नौकर को भेज सकता हूं कि इच्छा ने कहा नहीं अगर तुम्हें अपनी समस्या का समाधान जानना है तो तुम्हें बिना कोई प्रश्न किए सारे काम खुद करने पढेंगे भिक्षु ने फिर कहा शहर के दक्षिणी हिस्से में जो सबसे बड़ा बाजार है उसके आखिरी में कबाड़ की सबसे बड़ी दुकान है तुम्हें पैदल जाकर वहां से ही पुराना लोहा खरीद कर लाना है राजकुमार ने थोड़ी देर तक कुछ सोचा फिर बाजार की तरफ निकल पड़ा बाजार की तरफ निकलते ही उसके मन में विचारों की सुनामी आ गई वह सोचने लगा फालतू भी चक्कर में पड़ा लोग मेरे कपड़ों for other story click here
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से मुझे पहचान लेंगे पता नहीं लोग यह सोच रही होंगी कि सम्राट का पुत्र होकर पैदल बाजार आया है लोग मेरी पीठ पीछे मेरा मजाक उड़ायेंगे और न जाने कैसी-कैसी बातें करेंगे यह सब सोच सोच कर उसका सिर शर्म से नीचे झुक गया सर नीचे झुकाए चलता हुआ राजकुमार कबाड़ी की दुकान पर पहुंचा और वहां जल्दी-जल्दी घबराहट के साथ लोहा खरीदने लगा कि लोहा बहुत ही गंदा था लेकिन राजकुमार का मन तो चिंता में डूबा हुआ था उसने ध्यान नहीं दिया और उसके कपड़े गंदे हो गए अब तो राजकुमार और भी ज्यादा घबरा गया कि लोग क्या सोचेंगे वह लोहा लेकर जल्दी-जल्दी चलता हुआ बोध भिक्षु के पास
महल से निकाल दिया
पहुंचा वृक्ष उसके घबराई हुई हालत देखकर मुस्कराए फिर बोले बहुत बढ़िया अब तुम यह लोहा लेकर शहर के दूसरे कोने पर जाओ वहां एक लोहार की दुकान है तुम्हें अपने हाथों से इस लोहे को पिघलाकर इससे एक तलवार बनानी है राजकुमार बिना मन की दोबारा बाजार के दूसरे कोने की तरफ बढ़ चला उसके मन में विचार चल रही थी कि अगर पिताजी को पता चला तो क्या होगा कहीं लोग यह समझ रही हूं कि पिताजी ने मुझे महल से निकाल दिया है वह मन-ही-मन खुद को कोसता जा रहा था कि मैं खुद को हमेशा ही ऐसे आयोजनों में फंसा लेता हूं ऐसे ही विचारों के उधेड़ बुन में
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राजकुमार इस बार
फंसा हुआ वह लोहार की दुकानें पहुंचाता है कि वह लोहार के बताए अनुसार खुद ही रूह को पिलाता है और उसे सांचे में ढालकर एक तलवार बनाता है खुद के हाथों से बनाई तलवार को देखकर उसे बड़ी खुशी होती है अचानक उसने महसूस किया कि वह तलवार बनाने के काम में इतना खो गया था कि उस दौरान उसके मन में शिकायत के कोई विचार नहीं आ रही
थी वह खुशी उनके साथ तलवार लेकर भिक्षु के पास वापस जाने लगा इस बार लौटते वक्त उसका मन प्रसन्न व और शांति था उसने जाकर भिक्षु के हाथों में अपने तलवार रख दी तलवार देखकर भिक्षु ने का राजकुमार इस बार तुम्हें कुछ अच्छा महसूस हो रहा होगा
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राजकुमार वापस
यह तुम्हारा घमंड की तलवार हैं यस्मिन राजकुमार थोड़ा सा चौंका लेकिन मैं कुछ समझा नहीं फिर भिक्षु ने कहा ठीक है अब हम एक आखिरी कम और करो फिर मैं तुम्हें बताता हूं तुम वापस बाजार जा कर लोगों से पूछो कि क्या उन्होंने तुम्हें थोड़ी देर पहले यहां देखा और अगर देखा है तो उन तुम्हारे बारे में क्या सोचा कि राजकुमार वापस बाजार गया और बहुत से लोगों से पूछा कि क्या आपने थोड़ी देर पहले मुझे यह देखा है ज्यादातर लोगों का जवाब था नहीं हमने आपको नहीं देखा राजकुमार ने बाजार की सबसे पहले दुकानदार से पूछा दुकानदार ने कहा हां मैंने आपको देखा था लेकिन सुबह वह दुकान
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सोचने का समय नहीं
में बहुत से कम होता है और ग्राहकों का भी आना जाना लगा रहता है इसीलिए मेरे पास ज्यादा कुछ सोचने का समय नहीं था बस आपको देखा और अपने काम मे लग गया इसी प्रकार और भी बहुत से लोगों से पूछने पर पता चला कि किसी ने भी राजकुमार और उसके घबराहट पर ध्यान
नहीं दिया राजकुमार में कवर वाले से भी पूछा तो उसका जवाब था मुझे लगा था कि आप किसी बड़े संपन्न घराने से हो लेकिन मेरे भाई इसके आ गई मैंने और कुछ भी नहीं सोचा बाजार के लोगों से ऐसी बातें सुनकर राजकुमार को लगा जैसे किसी ने उसके सर का सारा बोझ हल्का कर दिया हो वह खुशी से झूमता हुआ बोध भिक्षु के पास पहुंचा है और
सबका ध्यान
मैं सारी बात बताई सारी बात सुनने के बाद अध्यक्ष ने गंभीर होकर कहा आज इस घटना से तुम्हें तीन चीजें सीखी पहली हम खुद अपनी गलतियों अपनी कमियों को जितनी गहराई से देखते हैं उतनी गहराई से ही और कोई नहीं देखता हम सबको अपने दुख अपनी कमियां अपनी गलतियां सबसे बड़ी लगती हैं और हमें लगता है कि सबका ध्यान हमारी तरफ है सब हमारे बारे में ही सोच रहे हैं सब हमारी कमियों को ही देख रहे हैं लेकिन असल में कोई किसी के बारे में ही सोचता किसी के पास इतना समय नहीं है और अगर है भी तो सब कुछ के बारे में ही सोचते रहते हैं इसीलिए इस बात
आपकी बुराई नहीं करते
की चिंता करना मूर्खता है कि कोई हमारे बारे में कुछ सोच रहा है कोई हमारे बारे में कुछ नहीं सोच रहा था और दूसरी सीख हम खुद ही अपनी सबसे बड़ी आलोचक हैं हम अंदर ही अंदर कुछ कमियां निकालते रहते हैं खुद को दोस्त लेते रहते हैं और अपनी कमियों और गलतियों के बारे में सोच-सोच कर उन्हें इतना बड़ा बना लेते हैं जितनी वह असल में होती नहीं है और फिर हम ज्यादा सोचने की आदत के शिकार हो जाते हैं ऐसा नहीं है कि लोग आपके बारे में बातें ही करते आपकी बुराई नहीं करते लेकिन जो ऐसा करते हैं वह खुद किसी काम के नहीं होते इसलिए ऐसे लोगों की बातों से तुम्हें फर्क नहीं
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मानसिक शक्ति
पड़ना चाहिए भिक्षु ने कहा तीसरी बात बड़े ध्यान से सुनना जब तुम्हारे मन में विचारों के तूफान उठने लगे मन बेचैन और अशांत हो जाए तो मन में उठने वाले बेलगाम विचारों को दबाने और उनसे लड़ने की बजाय खुद को किसी कलात्मक काम लगा दो किसी ऐसे काम में लग जाओ जिसे तुम्हें अपने हाथों से करना पड़े जैसे तुम्हें तलवार बनाई थी है क्योंकि ऐसा करने से तुम्हारी सारी मानसिक शक्ति एक दिशा में आ जाएगी और थोड़ी ही देर में तो साथ महसूस करने लगे जिससे तुम्हारा पूरा दिन बर्बाद होने से बच जाएगा और तुम पश्चाताप से भी बच जाओगी तो previews story ke liye click kare
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. राजकुमार की सबसे बड़ी चिंता क्या थी?
राजकुमार की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि लोग उसके बारे में क्या सोचते होंगे। वह अक्सर अपनी गलतियों के लिए खुद को कोसता रहता और इस चिंता में डूबा रहता था कि लोग क्या कहेंगे। इसी कारण वह कई बार अशांत और हताश हो जाता था।
2. बोध भिक्षु ने राजकुमार की समस्या का समाधान कैसे सुझाया?
बोध भिक्षु ने राजकुमार को उसकी समस्या का समाधान बताते हुए तीन कार्य दिए: बाजार से पुराना लोहा खरीदना, उस लोहे से तलवार बनाना, और फिर लोगों से पूछना कि उन्होंने उसे देखा या नहीं। इन कार्यों के माध्यम से भिक्षु ने राजकुमार को सिखाया कि लोगों की चिंता छोड़कर अपनी गलतियों को स्वीकारना और स्वयं को कलात्मक कार्यों में व्यस्त रखना चाहिए।
3. राजकुमार ने बाजार से क्या खरीदा और क्यों?
राजकुमार ने बाजार से पुराना लोहा खरीदा। बोध भिक्षु ने उसे यह कार्य दिया ताकि वह समझ सके कि अपनी चिंताओं और लोगों की सोच की परवाह किए बिना भी वह महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है।
4. तलवार बनाने के दौरान राजकुमार ने क्या अनुभव किया?
तलवार बनाने के दौरान राजकुमार ने महसूस किया कि वह इस काम में इतना खो गया था कि उसके मन में किसी भी प्रकार की शिकायत या चिंता नहीं थी। इस अनुभव ने उसे यह सिखाया कि जब मन अशांत हो, तो किसी कलात्मक कार्य में खुद को व्यस्त कर लेना चाहिए।
5. बोध भिक्षु ने राजकुमार को कौन सी तीन महत्वपूर्ण बातें सिखाई?
बोध भिक्षु ने राजकुमार को तीन महत्वपूर्ण बातें सिखाईं:
- हम अपनी गलतियों और कमियों को जितनी गहराई से देखते हैं, उतनी गहराई से और कोई नहीं देखता। इसलिए लोगों की चिंता करना व्यर्थ है।
- हम खुद अपनी सबसे बड़ी आलोचक होते हैं। अपनी गलतियों को इतना बड़ा न बनाएं जितनी वे वास्तव में होती हैं।
- जब मन अशांत हो, तो किसी कलात्मक कार्य में व्यस्त हो जाएं। इससे मानसिक शक्ति एक दिशा में केंद्रित होती है और अशांति दूर होती है।
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