
Jobs Faith God’s Test Strength in Suffering (3)
Jobs Faith God’s Test Strength in Suffering
मैं अयूब हूं और यह मेरी कहानी है मैं पूर्व के सबसे धनी लोगों में से एक था परमेश्वर ने मुझे बहुत आशीष दी थी 7000 भेड़े 3000 ऊंट 500 जोड़ी बैल 500 गधे और बहुत से सेवक मेरे सात बेटे और तीन बेटियां थी मैं परमेश्वर से डरता था

और बुराई से दूर रहता था मेरे बेटे अक्सर अपने घरों में दावत रखते और अपनी बहनों को भी बुलाते मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता कि वे पवित्र रहे हर सुबह मैं उनके लिए होमबली चढ़ाता यह सोचकर कि कहीं उन्होंने अपने मन में पाप कर परमेश्वर का अपमान तो नहीं किया फिर एक दिन जब मेरे बेटे और बेटियां सबसे बड़े भाई के घर में दावत कर रहे थे तभी
एक पल में उजड़ गई दुनिया: अय्यूब के पास आए तीन दुःखद समाचार
एक दूत दौड़ता हुआ आया और बोला आपके बैल खेत जोत थे और गधे पास में चर रहे थे तभी सई लोगों ने हमला कर दिया उन्होंने आपके सारे जानवर लूट लिए और सेवकों को मार डाला मैं ही अकेला बचा हूं जो आपको यह बताने आया हूं मैं इस समाचार को समझ भी नहीं पाया था कि तभी दूसरा दूत आया और घबराए स्वर में बोला आकाश से आग गिरी और आपकी भेड़े और सेवकों को जलाकर राख कर दिया मैं ही अकेला बचा हूं जो आपको यह बताने आया हूं मेरी दुनिया एक पल में उजड़ गई वह अभी बोल ही रहा था कि एक और दूर दौड़ता हुआ आया और घबराए स्वर में बोला कल दियों ने तीन टुकड़ियों में आकर आपके ऊंटों पर हमला किया उन्हें लूट लिया और आपके सेवकों को मार डाला मैं ही अकेला बचा हूं जो आपको यह बताने आया
अय्यूब का अंतिम आघात: दुख की पराकाष्ठा और अडिग विश्वास
मैं यह सुनकर पहले ही स्तब्ध था लेकिन तभी एक और दूत ते हुए आया और कांपते हुए बोला आपके बेटे और बेटियां सबसे बड़े भाई के घर में दावत कर रहे थे तभी अचानक एक भयंकर आंधी मरुस्थल से उठी वह घर के चारों कोनों से टकराई और पूरा घर गिर गया वे सब दबकर मर गए मैं ही अकेला बचा हूं जो आपको यह बताने आया हूं मेरा दिल जैसे थम गया
मैंने अविश्वास में अपने वस्त्र फाड़ दिए सिर मुंडवा लिया और जमीन पर गिर करर रोने लगा मेरी सबसे बड़ी आशंका सच हो चुकी थी मैं राख में बैठ गया और टूटे हुए मिट्टी के बर्तन से अपने शरीर को खरोंच लगा उसी समय मेरी पत्नी मेरे पास आई और कहा क्या अब भी तुम अपनी भलाई पर अडिग हो परमेश्वर को शाप दो और मर जाओ मेरी अपनी पत्नी ने
मुझसे यह कहा मैंने उसकी ओर देखा और शांत स्वर में उत्तर दिया तुम मूर्ख स्त्री जैसी बात कर रही हो क्या हम परमेश्वर से केवल सुख ही ले और दुख को न स्वीकार करें इतनी भयंकर पीड़ा के बावजूद मैंने परमेश्वर को दोष नहीं दिया ना ही कोई गलत बात कही जब मेरे तीन मित्र एलीफस बिल्ड और सोफर को मेरी विपत्ति के बारे में पता चला
तो वे अपने-अपने घरों से निकले और आपस में मिलकर मुझे सांत्वना देने आए वे उम्र में मुझसे बड़े थे लेकिन जब उन्होंने मुझे दूर से देखा तो मुझे पहचान भी ना सके वे जोर-जोर से रोने लगे अपने वस्त्र फाड़ डाले और सिर पर धूल डाल ली फिर वे मेरे पास आकर जमीन पर बैठ गए सात दिन और सात रात और बिना एक शब्द बोले मेरे दुख में मेरे साथ रहे कोई भी मुझसे एक शब्द नहीं
अय्यूब का विलाप: जन्म पर शोक और जीवन पर प्रश्न
कह सका क्योंकि वे देख रहे थे कि मैं कितनी गहरी पीड़ा में था फिर मैंने अपना मुंह खोला और अपने जन्म के दिन को कोस दिया मैं रो पड़ा जिस दिन में पैदा हुआ वह मिट जाए वह रात भी मिट जाए जब कहा गया था लड़का जन्मा है वह दिन अंधकार में डूब जाए परमेश्वर भी उसे याद ना करे और उस पर कभी प्रकाश ना चमके मैंने खुद से सवाल पूछना

शुरू किया आखिर पीड़ा में पड़े लोगों को जीवन क्यों दिया जाता है उन लोगों को क्यों जिनका मन दोहक से भरा रहता है जो मौत की लालसा रखते हैं पर वह उन्हें नहीं मिलती जो उसे ऐसे खोजते हैं जैसे कोई छुपा
खजाना खोजता है जो कब्र तक पहुंचकर ही राहत महसूस करते हैं ऐसे इंसान को जीवन क्यों दिया जाता है जिसका रास्ता अंधकार में खो गया है जिसे परमेश्वर ने हर ओर से घेर रखा है मेरे लिए हर दिन भारी हो गया था
Jobs Faith God’s Test Strength in Suffering
मेरी रोटी अब बस सिसकियां बन गई थी मेरे आह पानी की धारा की तरह बहने लगी जिसका मुझे हमेशा डर था वह मेरे साथ हो गया जिससे मैं कांपता था वही मेरी जिंदगी में आ गया अब ना शांति है ना चैन ना आराम है बस दर्द और बेचैनी है मेरा दिल टूट चुका था मेरी जिंदगी बुझने लगी थी अब तो कब्र ही मेरी राह देख रही थी चारों ओर से
अय्यूब की पीड़ा और मित्रों के आरोप: जब सांत्वना बन गई निंदा
लोग मेरा मजाक उड़ा रहे थे मेरी आंखें उनकी नफरत को सहने के लिए मजबूर थी मैंने परमेश्वर से गुहार लगाई हे परमेश्वर तू ही मेरी गवाही दे मेरी सुरक्षा का वचन दे कौन है जो मेरी जमानत देगा दुख ने मेरी आंखों की रोशनी छीन ली मेरा शरीर बस एक छाया बनकर रह गया मैंने कहा मेरे दिन बीत चुके हैं मेरी सारी योजनाएं बिखर गई हैं अब कुछ भी शेष नहीं
रहा मेरे तीन मित्र एलीफस बिल दद और सोफर मुझे सांत्वना देने आए वे मेरी पीड़ा में मेरा सहारा बनना चाहते थे उन्होंने अपने विचार रखे और समझाने लगे कि परमेश्वर क्यों लोगों को कष्ट सहने देता है लेकिन उनका विश्वास था कि मेरी यह पीड़ा किसी ना किसी गलती या पाप का परिणाम है इसलिए वे बार-बार मुझसे कहने लगे कि मैं अपनी भूल
स्वीकार कर लूं पश्चाताप करूं ताकि परमेश्वर मुझ पर फिर से कृपा करें एली फज ने कहा तुम्हारा दुख किसी पाप के कारण आया होगा तुम्हें परमे से दया और क्षमा मांगनी चाहिए बिलदार और सोफर ने भी कहा जरूर तुमने कुछ गलत किया होगा तभी परमेश्वर ने तुम्हें इस परीक्षा में डाला है अगर तुम सच में निर्दोष होते तो यह सब ना होता बिल्ड ने तो यहां तक कह दिया तुम्हारे
अपने बच्चों ने ही अपनी मृत्यु को बुलाया होगा उन्होंने कुछ ऐसा किया होगा जिससे वे इस न्याय के भागी बने लेकिन सबसे कठोर बात सोफर ने कही उसने मुझसे कहा क्या तुम्हारी बातें यूं ही स्वीकार कर ली जाएंगी क्या तुम्हारे शब्द ही अंतिम सत्य होंगे क्या तुम्हारी व्यर्थ बातें दूसरों को चुप करा देंगी क्या कोई तुम्हारी गलती नहीं बताएगा
अय्यूब की पुकार और मित्रों का विरोध: परमेश्वर के न्याय की तलाश में
तुम कहते हो कि तुम निर्दोष हो कि तुम्हारा विश्वास शुद्ध है पर काश परमेश्वर स्वयं बोले काश वह अपने ज्ञान का रहस्य प्रकट करें क्योंकि उसकी बुद्धि अनंत है याद रखो उसने तुम्हारे कुछ पापों को भुला भी दिया है वह कपटिवा क्या जब वह बुराई देखता है तो उसे अनदेखा कर देता है अगर तुम सच में परमेश्वर के करीब आओ और अपने पापों को उठाओ
से मुक्ति पाओ और अपने घर से बुराई को दूर कर दो तो तुम्हारा चेहरा फिर से चमक उठेगा तुम बिना किसी भय के खड़े रहोगे तुम अपने बीते हुए दुख को भूल जाओगे जैसे कोई नदी का बहता पानी पीछे छोड़ देता है हमने यह मान लिया था कि मेरी तकलीफ परमेश्वर के न्याय का परिणाम है लेकिन मैं तो हमेशा परमेश्वर से डरता था और बुराई से दूर रहता था पर मेरे अपने मित्र ही मुझ पर
दोष लगाने लगे एक समय ऐसा आया जब मैं उनकी बातों से थक गया मैंने कहा तुम ही क्या अकेले बुद्धिमान हो क्या तुम्हारे साथ ही ज्ञान समाप्त हो जाएगा मुझे भी समझ है मैं तुमसे कम नहीं हूं यह सब बातें कौन नहीं जानता लेकिन देखो मैं अपने ही मित्रों के लिए उपहास का पात्र बन गया हूं मैंने परमेश्वर को पुकारा और उसने मुझे उत्तर दिया फिर भी वे मुझ पर हंस रहे हैं मैं जो धर्मी था जो निर्दोष था अब मजाक का विषय बन गया हूं पर मैं
चुप नहीं रहूंगा मैं परमेश्वर से बात करना चाहता हूं मैं अपनी बात उसके सामने रखना चाहता हूं लेकिन तुम लोग झूठी बातें बनाकर मेरी निंदा कर रहे हो तुम सब र्थ के वैद्य हो जो इलाज नहीं बल्कि और पीड़ा देते हो काश तुम चुप रह

अय्यूब की पुकार: परमेश्वर से न्याय की प्रार्थना और आत्मविश्वास की घोषणा
जाते यही तुम्हारी बुद्धिमानी होती अब मेरी बात ध्यान से सुनो मेरे शब्दों को गौर से सुनो क्या तुम परमेश्वर के लिए झूठ बोलोगे क्या उसके पक्ष में छल करोगे क्या तुम उसका पक्ष लेने के लिए अन्याय करोगे लेकिन अगर वही तुम्हारी परीक्षा ले तो क्या तुम उसे धोखा दे सकोगे जैसे तुम मनुष्यों को धोखा देते हो अगर तुम पक्षपात करोगे तो क्या परमेश्वर तुम्हें नहीं
जांचे क्या उसकी महिमा तुम्हें भयभीत नहीं करेगी क्या उसका भय तुम्हारे ऊपर नहीं गिरेगा अगर वह मुझे मार भी डाले तो भी मैं उस पर भरोसा रखूंगा मैं उसके सामने अपनी राह की सफाई दूंगा मुझे यकीन है कि अंत में वह मुझे निर्दोष ठहराए क्योंकि अब कोई भी मुझे उसके सामने दोषी नहीं ठहरा सकता मैंने अपनी बात कहने के लिए खुद को तैयार
कर लिया है अब मुझे पूरा विश्वास है कि मैं निर्दोष साबित होऊंगा अगर कोई मुझ पर दोष लगाए तो मैं चुप हो जाऊंगा और मर जाऊंगा हे परमेश्वर केवल दो बातें मुझे दे दे फिर मैं तुझसे मुंह नहीं छुपाऊंगा मुझे अपने भय से मत डरा और अपना हाथ मुझसे हटा ले फिर मुझे बुला और मैं उत्तर दूंगा या मुझे बोलने दे और तू उत्तर दे मुझे बता
मैंने कित ने पाप किए हैं मेरा अपराध क्या है मेरी गलती क्या है हे परमेश्वर तू मुझसे अपना मुख क्यों छुपाता है तू मुझे अपना शत्रु क्यों समझता है तूने मेरी टांगों को बेड़ियों से बांध दिया तू मेरे हर मार्ग को देख रहा है मेरे पैरों के निशान तक तूने गिन रखे हैं अब यह दोहक मेरे लिए असहनीय हो गया है मैं व्याकुल हूं भयभीत हूं मैं उस अन्याय को देख रहा हूं
परमेश्वर का उत्तर: पीड़ा में भी अडिग सत्य और दिव्य संवाद की प्रतीक्षा
जिसमें दुष्ट फल फूल रहे हैं जबकि मैं और अन्य निर्दोष लोग दुख भोग रहे हैं मैं परमेश्वर से जाकर इसका उत्तर मांगना चाहता हूं लेकिन मैं उसे नहीं देख सकता उसे नहीं पा सकता फिर मैंने अपने मित्रों से कहा जिस परमेश्वर ने मुझे न्याय नहीं दिया जिसने मेरे जीवन को दुखों से भर दिया वही जीवित है और मैं शपथ लेता हूं जब तक मेरे
भीतर प्राण है जब तक परमेश्वर की सांस मुझ में है मैं कभी अधर्म की बात नहीं करूंगा मेरी जीभ झूठ नहीं बोलेगी मैं कभी नहीं मानूंगा कि तुम सही हो जब तक मैं जीवित हूं मैं अपनी सत्य निष्ठा को नहीं छोडूंगा मैं अपनी सच्चाई पर अडिग रहूंगा और उसे कभी नहीं छोडूंगा जब तक मेरे भीतर प्राण है मेरा मन मुझे दोषी नहीं ठहराए आखिरकार परमेश्वर ने जवाब दिया पर

दुख में खुद को सही ठहराना कितना कठिन था मेरा सबसे बड़ा कष्ट क्या था शारीरिक पीड़ा सिर से पैर तक मेरा शरीर घावों से भर गया था था मैं बेहद थका हुआ था हर पल असहनीय दर्द से गुजर रहा था मेरा कष्ट सामाजिक भी था लोग मुझसे घृणा करने लगे थे गांव के लोग मेरी दशा को देख चुके थे अब वे मुझसे कट गए थे कोई मुझसे बात करने नहीं आता था लोग मुझे देखकर रास्ता बदल
Jobs Faith God’s Test Strength in Suffering
लेते थे मैं गांव के छोर पर राख के ढेर पर बैठा रहता था यहां तक कि बच्चे भी मुझे देखकर हंसते थे मेरा कष्ट मानसिक भी था मैं सोचता था यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है क्या मैंने ऐसा कुछ किया था जिससे यह सब होना चाहिए पर सबसे गहरा घाव मेरी आत्मा पर लगा था मुझे लगा जैसे परमेश्वर मुझसे दूर हो गया है यही सबसे बड़ा दुख था
जब हमें लगता है कि परमेश्वर हमारी परवाह नहीं करता तो दुख और भी कठिन हो जाता है मैंने 26 बार परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझसे बोले और अब मेरी वह प्रार्थना सुनी गई परमेश्वर ने मुझसे कहा यह कौन है जो बिना समझ के बात करके मेरी योजना को बिगाड़ रहा है कमर कसो जैसे एक पुरुष मैं तुमसे प्रश्न करूंगा और तुम्हें उत्तर देना होगा
परमेश्वर का चुनौतीपूर्ण सवाल: सृष्टि की महानता और मानव की स्थिति
जब मैंने पृथ्वी की नीव रखी थी तब तुम कहां थे अगर तुम जानते हो तो बताओ किसने इसकी सीमाएं तय की निश्चित ही तुम जानते हो किसने इसे नापने के लिए रेखा खींची किसके ऊपर इसकी नीव रखी गई या किसने इसका कोना पत्थर स्थापित किया जब भोर के तारे एक साथ गा रहे थे और स्वर्ग दूत आनंद से जय जयकार कर रहे थे किसने समुद्र को उसके
द्वारों के पीछे बंद किया जब वह गर्भ से बाहर उमड़ पड़ा था जब मैंने उसे बादलों से ढका और गहरे अंधकार में लपेटा जब मैंने उसकी सीमाएं तय की और उसके लिए दरवाजे और कड़े बांध दिए जब मैंने कहा हस यहां तक आ सकते हो पर इससे आगे नहीं तेरी गरवली लहरें रुक जाएंगी क्या तुमने कभी भोर को आदेश दिया है या उषा को उसका स्थान दिखाया है कि वह पृथ्वी के कोनों को

पकड़ ले और दुष्टों को हिलाकर निकाल दे पृथ्वी मोहर के नीचे की मिट्टी की तरह रूप ले लेती है और उसकी आकृति वस्त्रों की तरह उभरती है क्या जो सर्वशक्तिमान से विवाद करता है वह उसे सुधार सकता है जो परमेश्वर पर दोष लगाता है उसे उसका उत्तर देना चाहिए मैंने उत्तर दिया हे प्रभु मैं तुच्छ हूं मैं आपको क्या उत्तर दे सकता
हूं मैं अपने मुंह पर हाथ रखता हूं मैं एक बार बोल चुका पर अब उत्तर नहीं दूंगा दो बार कह चुका पर अब और नहीं कहूंगा तब परमेश्वर ने कहा क्या तुम मेरी न्याय शलता को नकार होगे क्या तुम मुझे दोषी ठहरा करर खुद को निर्दोष ठहरा होगे क्या तुम्हारे पास भी वैसी ही शक्ति है जैसी परमेश्वर की है क्या तुम्हारी आवाज भी वैसी ही गर्जन कर सकती है
तो फिर अपने को महिमा और वैभव से सजाओ स्वयं को आदर और प्रताप में लपेट लो हे प्रभु मैं कुछ भी नहीं हूं आपकी महिमा के सामने मैं मिट्टी के समान हूं आपकी शक्ति के आगे मेरी कोई सामर्थ्य नहीं आपने कहा अपने क्रोध की ज्वाला को प्रकट करो अभिमान हों को देखो और उन्हे दीन करो दुष्टों को मिट्टी में मिला दो यदि मैं ऐसा कर सकता तो क्या मैं स्वयं उद्धार
करता नहीं बनता, लेकिन मैं सिर्फ धूल हूँ. आपने एक भीमकाय प्राणी को बनाया जो घास चरता है, लेकिन उसमें बहुत शक्ति है, उसकी पूंछ देवदार वृक्ष की तरह हिलती है, उसकी हड्डियां कांसे की नली की तरह मजबूत हैं, लेकिन आप ही उसे नियंत्रित कर सकते हैं, तो मैं जो तुच्छ और निर्बल हूँ कैसे स्वयं को नियंत्रित कर सकता हूँ
अय्यूब का आत्मसमर्पण: परमेश्वर की योजना को स्वीकार करना और पश्चाताप की राह
संभाल सकता हूं हे प्रभु मैं समझ गया हूं पर्वत उसे भोजन देते हैं जलधाराएं उसके चारों ओर बहती हैं फिर भी वह निर्भय है अडिग है मैं तो तिनके के समान हूं छोटी सी आंधी भी मुझे गिरा सकती है जब आप बोलते हैं तो मैं उत्तर देने योग्य नहीं जब आप प्रश्न करते हैं तो मेरे पास कोई जवाब नहीं मैं मुंह पर हाथ रखकर चुप हो जाता
हूं क्योंकि मैं कुछ नहीं जानता हे प्रभु आप ही सब कुछ कर सकते हैं आपकी योजनाएं अद्भुत हैं और मैं उन्हें समझने में असमर्थ हूं अब मैं अपनी बुद्धि पर भरोसा नहीं करूंगा मैं आपकी शरण में आता हूं हे प्रभु आपकी योजना को कोई नहीं रोक सकता आपने पूछा यह कौन है जो बिना ज्ञान के मेरी योजना को धुंधला कर रहा है सचमुच मैंने उन बातों पर बोला जिन्हें मैं समझ नहीं सका वे बातें मेरे लिए बहुत गहरी और अद्भुत थी आपने कहा सुनो अब मैं बोलूंगा मैं तुमसे प्रश्न करूंगा
और तुम उत्तर दोगे पहले मैंने आपके बारे में केवल सुना था पर अब मैंने आपको देख लिया है इसलिए मैं खुद को तुच्छ मानता हूं और धूल और राख में बैठकर पश्चाताप करता हूं फिर प्रभु ने मेरे मित्रों से कहा कि वे बलिदान चढ़ाएं और मैं उनके लिए
प्रार्थना करूं क्योंकि उन्होंने प्रभु के बारे में सत्य नहीं कहा और प्रभु उनसे क्रोधित थे जब प्रभु ने मुझसे बात की तो वह आंधी और तूफान के बीच हुआ उन्होंने मुझे याद दिलाया कि वही सृष्टि के रचयिता हैं उन्होंने अपने महान कार्यों का वर्णन किया और मुझसे पूछा क्या मैं उनकी बराबरी कर सकता हूं अंत में प्रभु ने मुझसे कहा
अय्यूब की परीक्षा और परमेश्वर का आशीर्वाद: विश्वास, शांति, और पुनःउत्थान की कथा
क्या मैं न्याय करने के योग्य हूं क्या मेरे लिए यह उचित है कि मैं उनसे प्रश्न करूं यह जानकर कि मैं कितना छोटा और निर्बल हूं मैंने प्रभु के सामने सिर झुका दिया मुझे उनका सेवक माना गया पर मेरे मित्रों को उनकी गलती का दंड मिला क्योंकि उन्होंने प्रभु के विषय में सत्य नहीं कहा सबसे बड़ी बात यह थी कि इन सभी कठिनाइयों
के बाद भी प्रभु ने मुझसे स्वयं बात की और इस अनुभव ने मुझे पूरी तरह बदल दिया फिर भी प्रभु ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन उन्होंने मेरी परीक्षा को देखा मैंने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने मेरी दशा बदल दी उन्होंने मुझे पहले से भी अधिक आशीर्वाद दिया मेरे सभी रिश्तेदार और पुराने मित्र मेरे पास लौट आए वे मेरे साथ बैठे मुझे
सांत्वना दी और मेरा हालचाल पूछा प्रत्येक ने मुझे एक चांदी का सिक्का और एक सोने की अंगूठी भेंट की प्रभु ने मेरे जीवन के अंतिम समय को पहले से अधिक आशीष किया मेरे पास पहले से दोगुनी संपत्ति थी हजारों भेड़ बकरिया ऊंट बैल और गधे इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि परमेश्वर हर परीक्षा से हमें निकाल सकते हैं बस हमें उन पर भरोसा बनाए
रखना है मैं प्रार्थना करता हूं कि परमेश्वर आपके जीवन को भी आशीष दें यदि आपने अब तक यीशु को अपना उद्धार करता स्वीकार नहीं किया है तो अभी भी समय है
अयूब की कहानी: 5 FAQ
1. अयूब कौन था और उसकी स्थिति कैसी थी?
अयूब एक बहुत ही धनी और पुण्यवान व्यक्ति था, जो परमेश्वर से डरता था और बुराई से दूर रहता था। उसके पास 7000 भेड़े, 3000 ऊंट, 500 जोड़ी बैल, 500 गधे और अनेकों सेवक थे। उसके सात बेटे और तीन बेटियां थीं। वह परमेश्वर से डरकर अपने बच्चों के लिए नियमित रूप से होमबलि चढ़ाता था, ताकि वे पवित्र बने रहें।
2. अयूब पर क्या संकट आया?
अयूब की संपत्ति और परिवार पर एक के बाद एक संकट आ गए। पहले उसके बैल और गधे लूट लिए गए, फिर उसकी भेड़े और सेवकों को आग में जलाकर नष्ट कर दिया गया। इसके बाद, उसके ऊंटों को लूट लिया गया और अंत में, उसकी तीन संतानों का निधन हो गया। यह सब एक ही दिन में हुआ, जिससे अयूब पूरी तरह से टूट गया।
3. अयूब ने अपने संकटों का कैसे सामना किया?
जब अयूब को यह सब खबरें मिलीं, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ दिए, सिर मुंडवाया, और परमेश्वर के सामने गिरकर रोने लगा। उसकी पत्नी ने उसे परमेश्वर को शाप देने की सलाह दी, लेकिन अयूब ने कहा, “क्या हम केवल सुखी समय में परमेश्वर से आशीर्वाद लें और दुख में उन्हें दोष दें?” अयूब ने परमेश्वर को दोष नहीं दिया, और न ही किसी गलत शब्द का उच्चारण किया।
4. अयूब के मित्रों का क्या रुख था?
अयूब के तीन मित्र—एलीफाज, बिलदद, और सोफर—उसकी कठिनाई में उसे सांत्वना देने आए। लेकिन वे यह मानते थे कि अयूब का यह दुख उसके पापों का परिणाम था, और उन्होंने उसे अपने पापों से पश्चाताप करने की सलाह दी। वे बार-बार उससे कहने लगे कि अगर वह सुधार कर ले, तो परमेश्वर उसकी मदद करेगा। अयूब ने इस पर असहमत होते हुए अपनी निर्दोषता की रक्षा की।
5. अयूब की परीक्षा का अंत कैसे हुआ?
अयूब ने अंततः परमेश्वर से जवाब मांगा, और परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया। परमेश्वर ने उसे यह बताया कि वह सृष्टि का रचयिता है और उसकी योजना मानव समझ से परे है। अयूब ने अपनी समझ का अभाव स्वीकार किया और परमेश्वर के सामने अपने आप को तुच्छ माना। परमेश्वर ने उसके मित्रों को दंडित किया, क्योंकि उन्होंने सत्य नहीं कहा, और अयूब को पहले से अधिक आशीर्वाद दिया। अयूब की संपत्ति पहले से भी अधिक बढ़ी, और उसके पुराने मित्र व रिश्तेदार वापस लौटे और उसे सांत्वना दी।
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अय्यूब की कहानी वाकई बहुत प्रेरणादायक है। उनकी आस्था और धैर्य की परीक्षा हमें यह सिखाती है कि कठिन समय में भी विश्वास बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। यह सोचकर दुख होता है कि उन्हें इतनी बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका धैर्य सचमुच प्रशंसनीय है। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी परिस्थितियों में हमारी आस्था और भी मजबूत हो जाती है? मैं यह जानना चाहूंगा कि अय्यूब ने इतने दुखों के बावजूद अपना विश्वास कैसे बनाए रखा? क्या हम भी ऐसी परीक्षाओं में खरे उतर सकते हैं? यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे करें।
यह कहानी अय्यूब की पीड़ा और उसके विश्वास की गहराई को दर्शाती है। उसकी स्थिति वाकई दिल दहला देने वाली है, जहां एक पल में उसकी पूरी दुनिया उजड़ गई। परमेश्वर के प्रति उसका विश्वास और धैर्य सचमुच प्रेरणादायक है। यह सोचकर हैरानी होती है कि इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी वह अपने विश्वास से डिगा नहीं। क्या हममें से कोई ऐसी परीक्षा में खरा उतर सकता है? मुझे लगता है कि अय्यूब की कहानी हमें यह सिखाती है कि पीड़ा और संघर्ष के बीच भी विश्वास बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी परिस्थितियों में इंसान का धैर्य टूट जाना स्वाभाविक है?
यह कहानी वाकई दिल को छूने वाली है। अय्यूब की दृढ़ता और उसकी आस्था को पढ़कर मन विचलित हो जाता है। उसके जीवन में आई इतनी विपत्तियों के बावजूद वह परमेश्वर पर विश्वास रखता है, यह सचमुच प्रेरणादायक है। मैं सोच रहा हूं कि क्या हम सभी में इतनी शक्ति होगी कि हम ऐसी परिस्थितियों में भी धैर्य रख सकें? अय्यूब की कहानी हमें जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकार करना सिखाती है। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह के संघर्ष हमें मजबूत बनाते हैं? अगर परमेश्वर अय्यूब की आस्था की परीक्षा ले रहा था, तो क्या हमारे जीवन में भी ऐसी परीक्षाएं होती हैं?