
The Amazing Love Story of Chandragupta
रतनगढ़ शहर पर चंद्रगुप्त नाम का राजा राज करता था उसके चार बेटे थे जो बड़े बहादुर और प्रतापी थे उसके सब बेटों में बड़ा बेटा मदन सेन सबसे वीर और सुंदर था मदन सेन की पत्नी का नाम चंद्रप्रभा था वह भी बेहद सुंदर थी वह अपने समान सुंदर किसी दूसरी स्त्री को ना समझती थी चंद्रप्रभा हर काम में होशियार थी गाना भी उसे खूब आता था एक दिन की बात है कि मदन सेन के पिता अर्थात राजा ने उसे उसकी किसी खता पर नाराज अब तुमसे क्या कहूं आज पिताजी ने मुझे 12 वर्ष के लिए देश निकाला दे दिया है
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अधिक भयानक
इसीलिए मैं तुमसे विदाई मांगने आया हूं यह सुनते ही चंद्रप्रभा गश खाकर गिरी और बेहोश हो गई उसकी यह हालत देखकर मदन सेन के रहे सहे होशो हवाज भी जाते रहे वह सोचने लगा मैंने बहुत बुरा किया जो अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया मदन सेन ने जब चंद्र प्रभा पर गुलाब जल छिड़का तो उसे होश आया होश में आकर चंद्र प्रभा ने मदन सेन से कहा हे प्यारे आप मुझ दासी को छोड़कर परदेश चले जाएंगे तो मैं आपके बिन कैसे जी पाऊंगी मैं भी आपके साथ ही चलूंगी तब मदन सेन ने कहा तुम मेरे साथ कैसे चल सकती हो क्योंकि
परदेश में अनेक प्रकार के संकट भोगने पड़ते हैं और तुम नर्म व नाजुक गलीच पर चलने वाली महलों में रहने वाली उन दुखों को कैसे बर्दाश्त कर पाओगी चंद्र प्रभा ने कहा हे प्राणनाथ महल के सुख आपके बगैर जंगल के दुखों से भी अधिक भयानक प्रतीत होंगे इससे अच्छा तो यही है कि मैं भी आपके साथ ही भी साथ ले चलूं इस विचार के मन में आते ही मदन सेन ने अपनी पत्नी से कहा अच्छा तुम उदास मत हो मैं तुम्हें अपने साथ ही ले The Amazing Love Story of Chandragupta
रानी को देखकर मदन
चलूंगा मदन सेन की बात सुनकर चंद्रप्रभा बड़ी प्रसन्न हुई और अपने पति के साथ जाने की तैयारियों में जुट गई अगली सुबह चंद्रप्रभा और मदन सेन शहर से निकलकर अतः ठंडी हवा के झोंकों ने उन्हें नींद की वादी में पहुंचा दिया मगर कुछ देर बाद ही एक सांप ने रानी को डस लिया सांप के डस ही रानी तड़पने लगी मदन सेन की आंख खुली तो रानी को तड़पते देखा सांप को जाते देखकर मदन सेन बेचैन हो गया कुछ देर बाद
रानी विष के प्रभाव से मर गई रानी को देखकर मदन सेन ऊंचे स्वर में विलाप करने लगा उसका रोना धोना सुनकर जंगल के जीव जंतु गुरने लगे मैं जीकर क्या करूंगा इसी जंगल में प्राण त्याग दूंगा यह मन में विचार कर वह रानी की लाश के पास से उठा और जंगल से लकड़ियां बीन करर इकट्ठी करने लगा वह लकड़ियां इकट्ठी करता जाता और रो-रोकर कहता जाता था रानी की चिता में मैं भी जल जाऊंगा संयोगवश शिव पार्वती जी पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हुए उसी जंगल में आ पहुंचे पार्वती ने जब मदन सेन के रो ने की आवाज सुनी तो उन्हें बड़ी दया आई उन्होंने शिव से कहा हे प्रभु कोई मानव हृदय विदारक
स्वर में रो रहा है उसके रोने से मेरा हृदय कांप रहा है आप मुझ पर दया करके उसका दुख दूर कीजिए पार्वती की बात सुनकर शिव ने कहा हे प्रिय मैं तुमको इसीलिए तो अपने साथ नहीं ला रहा था क्योंकि संसार में हर प्रकार के दुखी मनुष्य हैं हम किस-किस का दुख दूर करेंगे तब पार्वती ने कहा हे स्वामी कुछ भी हो इसका दुख तो आपको अवश्य ही दूर करना पड़ेगा पार्वती की बात सुन कर भगवान शिव माता पार्वती को अपने साथ लेकर वहां आए जहां मदन सेन करुण विलाप कर रहा था शिव ने मदन सेन से पूछा तू क्यों रोता है तुझको क्या दुख है मदन सेन ने कहा मैं
मदन सेन की ऐसी दुख भरी बात
आपको अपने दुख का हाल कैसे सुनाऊं मुझे इतना दुख है कि यदि धरती फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं मदन सेन की बात सुनकर भगवान शिव को दया आ गई और उन्होंने उससे कहा तू हमसे बता कि तुझे क्या दुख है तब मदन सेन ने कहा महाराज मैं रतनगढ़ के राजा चंद्रगुप्त का बेटा हूं मेरे पिता सहन नहीं हो रहा है इसलिए मैं लकड़ियां एकत्र कर रहा हूं ताकि अपनी प्यारी पत्नी के साथ ही जल मरू मदन सेन की ऐसी दुख भरी बात सुनकर शिव बोले The Amazing Story of Love, Deception, and Religion मदनसेन और चंद्रप्रभा: प्रेम, धोखा और धर्म की अद्भुत कहानी
राजकुमार संसार में आवागमन लगा ही रहता है एक ना एक दिन सबको शरीर छोड़कर जाना होता है ना कोई किसी के साथ आया है और ना कोई किसी के साथ जाएगा यदि तू जीवित रहेगा तो तुझे अनेक रानियां मिल जाएंगी इसलिए तू मेरा कहा मान और देह त्यागने का विचार छोड़ दे शिव के इन वचनों को सुनकर इसलिए मैं इसके साथ ही मरूंगा मदन सेन के हट को देखकर महादेव जी बोले राजकुमार तेरी पत्नी की आयु 20 वर्ष थी जो इसने भोग ली अब तो बस एक ही उपाय है other story
यदि तू अपनी आयु का कुछ भाग्य अपनी रानी को दे दे तो तुम दोनों की आयु बराबर हो जाएगी यदि यह बात तुम्हें स्वीकार है तो रानी अभी जीवित हो जाएगी शिवजी की बात सुनकर मदन सेन ने कहा मुझे सहर्ष स्वीकार है महाराज अब शिव ने मदन सेन के हाथ में पानी देकर उससे आधी आयु देने का संकल्प कराया और रानी के हाथ पैरों पर पानी डालने से पूर्व मदन सेन से कहा कि जब तुझे आवश्यकता हो तो यह संकल्प वापस भी ले सकता है ज्यों ही संकल्प वापस लेगा त्यों ही यह रानी मर जाएगी परंतु सावधान रानी से यह बात मत कहना किसी समय यह बात तेरे काम आएगी ऐसा कहकर रानी पर जल छिड़क कर शिव
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पार्वती वहां से चले गए उसी समय रानी उठकर बैठ गई और बोली प्रिय आज तो मैं बहुत सोई आपने मुझे जगाया क्यों नहीं मदन सेन ने कहा तुम थकी मांदी थी इसी कारण मैंने तुम्हें नहीं जगाया अब वे दोनों आगे चल दिए कितने ही दिनों बाद उन्हें एक बहुत सुंदर स्थान दिखाई दिया वहां एक
फकीर की कुटिया थी जब वे दोनों वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर नौजवान फकीर बैठा हुक का पी रहा है वे दोनों थके हारे तो थे ही अतः फकीर के पास बैठ गए उसी समय राजकुमार ने रानी से कहा रानी मुझे प्यास लगी है तुम कहो तो मैं जाकर कुएं से पानी पी आऊं और अगर तुम्हें भी प्यास लगी हो तो
तुम्हारे लिए भी लेता आऊंगा यह सुनकर रानी ने कहा मैं तो प्यासी नहीं हूं आप जाकर पी आइए मदन सेन डोल व रस्सी लेकर कुएं से पानी पीने चला गया उधर मदन सेन पानी पीने गया इधर चंद्रप्रभा और फकीर की निगाहें चार हो गई वह फकीर से बोली फकीर साहब आप तो यहां बड़े ऐश
में रहते हैं फकीर बोला तुम भी यहां रहो और ऐश करो चंद्रप्रभा कहने लगी फकीर साहब आपके साथ रहने को दिल तो कर रहा है मगर मेरा पति मेरे साथ है इसलिए मैं आपके साथ किस प्रकार रह सकती हूं फकीर ने कहा किसी तरह अपने पति को कुएं में धकेल दो फिर हम ऐश करेंगे फकीर की बात सुनकर चंद्रप्रभा ने कहा अच्छा मैं
ऐसा ही करूंगी तभी मदन सेन पानी पीकर रानी के पास आया तो रानी कहने लगी मैं भी प्यासी हूं मुझे भी पानी पिला लाओ तब मदन सेन ने कहा मैं ने तुमसे पहले ही पूछा था तब तुमने मना कर दिया था खैर अगर तुमको प्यास लगी है तो मैं अभी पानी लेकर आता हूं जब मदन सेन पानी लाने चलने लगा तो रानी कहने लगी मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं फिर वह भी उसके साथ चल पड़ी बेचारा मदन सेन तो उसके प्रेम में पागल हुआ पड़ा था उसे नहीं मालूम था कि यह मेरे प्राण लेने चल रही है जब मदन सेन कुएं पर जाकर डोल भरने लगा तो रानी ने पीछे से उसे धक्का देकर कुएं में गिरा दिया और खुद उस
मेरी जान बचाओ
फकीर के पास आ गई वह फकीर रानी को लेकर वहां से चल ता बना और दोनों एक बड़े शहर में जाकर आनंद से रहने लगे उस फकीर ने चंद्रप्रभा मदन सेन को कुएं में धकेला था दैव योग से एक जंजीर जो कुएं में लटकी हुई थी उसके हाथ में आ गई मदन सेन उसको पकड़कर कुएं में लटक गया और ईश्वर को याद करके
सोचने लगा कि मैंने रानी को जीवन दान दिया और रानी ने मेरे साथ यह विश्वासघात किया क्या यही मेरे प्यार की सजा है उसी दिन बंजारों का एक काफिला उस स्थान पर आकर ठहरा एक बंजारा बाल्टी और रस्सी लेकर कुएं पर पानी भरने आया जब उसने बाल्टी कुएं में डाली तो मदन सेन ने बाल्टी को पकड़ लिया तब उस बंजारे ने पूछा कुएं में कौन है मदन सेन ने कहा भाई मैं आफत का मारा एक इंसान हूं ईश्वर के लिए मुझको बाहर निकालकर मेरी जान बचाओ बंजारे को दया आ गई और उसने मदन सेन को कुएं से निकाल लिया और पूछा हे भाई तुम कौन हो इस कुएं में कैसे गिरे मदन सेन
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ने शुरू से लेकर आखिर तक सारा वृतांत बंजारे के सामने कह सुनाया बंजारा उसकी नेकी और रानी की करतूत सुनकर अफसोस करते हुए बोला त्रिया चरित्र जाने नहीं कोए कसम मार कर खुद सती होए यह कहकर बंजारे ने मदन सेन को सीने से लगा लिया और बोला तुम किसी प्रकार की कोई चिंता ना करो
भगवान बड़ा कारसाज है वह सब भला करेगा कि अगर चाहो तो तुम हमारे लश्कर में हमारे साथ रह सकते हो मदन सेन ने उसके साथ रहना स्वीकार कर लिया संयोग वश बंजारों का वह लश्कर कुछ दिनों के बाद उसी शहर में आया जिसमें रानी चंद्रप्रभा फकीर के साथ रह रही थी उस शहर को देखकर मदन सेन ने बंजारे से कहा भाई
एक दिन उस नगर के राजा
मेरी इच्छा कुछ दिन इस शहर में रहने की है यदि आपकी आज्ञा हो तो कुछ दिन मैं इस शहर में बिता लूं मदन सेन की बात सुनकर बंजारा बोला तुम्हारी जैसी मर्जी हो मुझे कोई आपत्ति नहीं है मदन सेन बंजारे से विदा लेकर शहर में किसी काम की तलाश में घूमने लगा कुछ दिनों बाद उसकी मेहनत रंग लाई
और उसे एक बड़े व्यापारी के यहां नौकरी मिल गई वह व्यापारी के यहां रहने लगा और बड़ी लगन और परिश्रम से अपने कर्तव्य का निर्वाह करने लगा मदन सेन की कर्तव्य निष्ठा और परिश्रम को देखकर उसे अपने यहां मुनीम बना लिया अब मदन सेन के दिन चैन से गुजरने लगे एक दिन उस नगर के राजा के यहां
रानी चंद्रप्रभा साज श्रृंगार करके
चंद्रप्रभा के नृत्य का आयोजन हुआ राजा ने शहर के तमाम बड़े व्यापारियों और सेठ साहूकारों को अपने यहां इस नृत्य का अवलोकन करने को आमंत्रित किया जिस दिन चंद्रप्रभा का नृत्य था शहर के सब व्यापारी और सेठ साहूकार राजा के यहां पहुंचे मदन सेन ने भी रानी के नृत्य और गायन की बड़ी तारीफ सुन रखी थी उसने अपने मन में सोचा कि इस नर्तकी का नृत्य अवश्य देखना चाहिए यही सोचकर मदन सेन भी राजा के यहां जा पहुंचा रानी चंद्रप्रभा साज श्रृंगार करके नृत्य करने के
रानी ने नृत्य शुरू किया और एक ठुमरी उसने उस महफिल में गाई चंद्रप्रभा ने ऐसे कई राग बड़े ही सुंदर ढंग से अपनी सुरीली आवाज में गाए उसे सुनकर महफिल के सब लोग वाह-वाह करने लगे राजा से लेकर प्रजा तक सबने उसे ढेरों इनाम दिए मदन सेन ने भी अपने हाथ की अंगूठी जिसमें हीरा जड़ा हुआ था उतारकर रानी चंद्रप्रभा को भेंट कर दी रानी चंद्र प्रभा ने अंगूठी को पहचान लिया और मन ही मन कहने लगी बड़ा गजब हो गया जो यह कम बखत अब तक जिंदा है और यहां आ पहुंचा है अब यह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा अब तो कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे कि यह मारा जाए फिर उसने अपने दिल में उपाय
सोचा इससे बेहतर और कोई उपाय नहीं हो सकता कि एक तड़पती कड़कती रागिनी गांव और राजा को रिज आऊं फिर जब राजा खुश हो जाए तो राजा से इसे मरवाने की आज्ञा का वचन ले लूं यह बात अपने मन में सोचकर रानी चंद्र प्रभा ने लचक हुई रागिनी गानी शुरू की रानी की इस बसंत की बहर को सुनकर राजा बहुत खुश हुआ वह चंद्र प्रभा से बोला हम तुझसे बहुत प्रसन्न हैं बोल क्या मांगती है जो मांगेगी तुझे मिलेगा चंद्र प्रभा ने कहा यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो पहले वचन दीजिए कि मैं जो मांगूंगी आप मुझे देंगे चंद्र प्रभा की बात सुनकर राजा ने उसे वचन दे दिया तब चंद्र प्रभा ने राजा
मेरी जान बच जाएगी
से कहा आपकी इस सभा में मेरा एक चोर है इसी समय आप उसे मरवा दीजिए राजा ने कहा चोर को मेरे सामने ला तब रानी ने मदन सेन का हाथ पकड़ा और उसे राजा के सामने ले आई राजा ने कहा इसे जल्लादों के हवाले कर दो यह सुनकर प्रलाद मदन सेन का हाथ पकड़कर उसे मारने के लिए ले जाने लगे उसी समय मदन सेन का मालिक व्यापारी घबराकर मदन सेन के पास आया और उससे पूछा तूने इस नर्तकी का क्या चुराया है जिसकी वजह से यह तुझे मरवाना चाहती है मदन सेन ने अपने मालिक से कहा मैंने इसका कुछ नहीं चुराया बस तुम इस राजा को मेरी दो बातें सुन लेने के लिए राजी कर लो तो मेरी जान बच जाएगी मदन सेन
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का मालिक यह सुनकर अपने साथी व्यापारियों और साहूकारों के पास आया और उन सबसे मशवरा किया उसने कहा मित्रों या तो राजा आज न्याय करें वरना हम सब इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे यह सलाह मशवरा करके सारे व्यापारी राजा के पास आए और कहने लगे राजा साहब हमारा मुनीम निर्दोष ही मारा जा रहा है व कहता है कि राजा ने मुझे मारने
की जो आज्ञा दी है सो मुझे भी राजा की आज्ञा से मरना स्वीकार है लेकिन मेरी दो बातें सुन ली जाएं राजा ने व्यापारियों की बात सुनकर कहा ठीक है मुनीम को लेकर आओ मदन सेन को लाया गया राजा बोला तुम जो कुछ भी कहना चाहते हो वह मेरे सामने कहो मदन सेन ने
कहा मैंने क्या दोष किया है जिसके कारण आपने मुझे मृत्यु दंड दिया है राजा ने कहा तू इस नर्तकी का चोर है यह सुनकर मदन सेन ने कहा मैं इस नर्तकी का चोर नहीं हूं मैं तो इसका पति हूं यह मुझे कुएं में धकेल करर एक फकीर के
साथ चली आई है तब चंद्र प्रभा ने कहा महाराज मैं इस चोर झूठे को क्या जानूं कि यह कौन है फिर मदन सेन बोला राजा साहब अगर यह मेरी पत्नी नहीं है तो जो कुछ चीज मैंने इसे रास्ते में दी थी यह मेरी वो अमानत मुझे लौटा दे तब रानी ने कहा मुझे स्वीकार है मदन सेन ने कहा अच्छा अपने हाथ में पानी ले मेरा तेरा न्याय इसी
आश्चर्य चकित रह गए राजा
सभा में होगा पानी लेकर कह कि जो वस्तु इसने रास्ते में मुझे दी थी वह मैं आज इसे वापस करती हूं तब रानी ने अपने हाथ में पानी लेकर कहा जो वस्तु इसने मुझे रास्ते में दी थी वह मैं आज इसे वापस करती हूं यह कहकर रानी ने जैसे ही अपने हाथ से संकल्प का पानी छोड़ा वैसे ही रानी के प्राण पखेरू उड़ गए यह देखकर सब लोग आश्चर्य चकित रह गए राजा ने घबराकर मदन सेन से कहा यह क्या हुआ इसके पीछे क्या राज है पूरी बात बताओ तब मदन सेन ने अपने बारे में राजा को बताना प्रारंभ किया और अपने पिता द्वारा देश निकाला दिए जाने से लेकर अब तक का सारा हाल सबके सामने कह सुनाया सारी
बातें सुनकर राजा ने मदन सेन को अपने सीने से लगा लिया मदन सेन की सच्चाई और धर्म प्राय होता ने राजा का दिल जीत लिया उसने खुश हो अपनी इकलौती पुत्री का विवाह मदन सेन के साथ कर दिया और उस फकीर को फांसी लगाने का हुक्म दिया निष्कर्ष इस प्रे प्रेरणादायक कहानी से हम मदन सेन और रानी चंद्र प्रभा की जीवन यात्रा के माध्यम से सत्य धर्म और कर्म की महिमा को समझेंगे मदन सेन जो एक धर्म परायण व्यक्ति है अपनी सच्चाई और ईमानदारी के बल पर जीवन की चुनौतियों का सामना करता है दूसरी ओर चंद्र प्रभा अपने झूठ और धोखाधड़ी के कारण अपनी विनाशकारी नियति को प्राप्त करती है
यह कथा हमें यह सिखाती है कि झूठ और अधर्म से कभी स्थाई सफलता नहीं मिलती सत्य की राह पर चलने वाले को भले ही कठिनाइयां आए परंतु अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है यह कहानी आत्मविश्वास सच्चाई और कर्म की महत्ता को दर्शाती है
यहां कुछ FAQs हैं जो इस कहानी के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करेंगे:
कहानी का मुख्य पात्र कौन है?
कहानी का मुख्य पात्र मदन सेन है, जो रतनगढ़ के राजा चंद्रगुप्त का सबसे वीर और प्रतापी पुत्र है।
मदन सेन को क्यों देश निकाला दिया गया?
राजा चंद्रगुप्त ने मदन सेन को उसकी किसी खता पर नाराज़ होकर 12 वर्षों के लिए देश निकाला दिया था।
चंद्रप्रभा ने मदन सेन के साथ क्या धोखा किया?
चंद्रप्रभा ने मदन सेन को कुएं में धकेल दिया और एक फकीर के साथ चली गई, जो बाद में मदन सेन के साथ उसके विश्वासघात का प्रतीक बनता है।
भगवान शिव ने मदन सेन की मदद कैसे की?
भगवान शिव ने मदन सेन को सलाह दी कि अगर वह अपनी उम्र का आधा भाग अपनी पत्नी चंद्रप्रभा को दे, तो वह जीवित हो जाएगी। मदन सेन ने ऐसा किया, जिससे चंद्रप्रभा वापस जीवित हो गई।
कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
यह कहानी सिखाती है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने से, चाहे कितनी भी कठिनाई आए, अंततः सत्य की ही विजय होती है। झूठ और अधर्म का परिणाम विनाशकारी ही होता है।
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