
एलिशा की विश्वासपूर्ण यात्रा The Faithful Journey of Elisha
एलिशा की विश्वासपूर्ण यात्रा The Faithful Journey of Elisha
प्राचीन इजराइल की सूखी जमीन पर एक सीधी साधी लेकिन गहराई से भरी कहानी शुरू होती है। एक साधारण इंसान की जिसका नाम था एलिशा। वो कोई राजा नहीं था ना ही कोई योद्धा। लेकिन परमेश्वर ने उसे ऐसा बल दिया कि राजा भी उससे

डरते थे और आम लोग उसमें आशा की एक झलक देखते थे। उसने जहरीले पानी को पीने लायक बनाया। मरे हुए को परमेश्वर की सामर्थ्य से फिर जीवित किया और कई बार शत्रु सेनाओं को देख ना पाने दिया। पर यह सब उसने अपनी बढ़ाई के लिए नहीं किया। वो तो बस परमेश्वर का एक आज्ञाकारी सेवक
था। हर चमत्कार, हर काम उस पर और भी सवाल खड़े करता था। कौन है यह व्यक्ति जो स्वर्ग की ताकत से चलता है। पर फिर भी ऐसा लगता है जैसे कोई नम्र और छोटा इंसान हो। यह कहानी है एलिशा की। विश्वास
एलिशा की विश्वासपूर्ण यात्रा The Faithful Journey of Elisha
जब एक किसान का बेटा परमेश्वर का भविष्यवक्ता बना
से भरी एक यात्रा जिसने सिखाया कि परमेश्वर का कार्य करने के लिए बड़ी हैसियत नहीं बल्कि आज्ञाकारिता और नम्रता चाहिए। एलिशा का जन्म एक बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। एक छोटे से गांव अबेल महोला में उसका नाम ही उसका उद्देश्य था। परमेश्वर ही उद्धार है। वो बचपन से ही खेतों में काम करता। अपने पिता की मदद करता। बिल्कुल एक किसान का बेटा मिट्टी से जुड़ा हुआ सीधा साधा। पर एक दिन उसकी सीधी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। परमेश्वर के एक बड़े नबी एलिया उसके पास आए और चुपचाप अपना चोगा उस पर डाल दिया। यह कोई साधारण चीज नहीं थी। यह संकेत था कि परमेश्वर उसे बुला
रहे हैं। ने उस बुलावे को तुरंत स्वीकार किया। उसने ना कोई सवाल पूछा ना कोई बहाना बनाया। उसने अपना परिवार, अपनी
जमीन, अपनी पहचान, सब कुछ पीछे छोड़ दिया और बस एलियाह के पीछे चल पड़ा। यह जानते हुए कि अब वह अपनी नहीं परमेश्वर की राह पर चलेगा। एलिशा जान गया था कि एलियाह का समय अब पूरा हो चला है। पर उसने उनका साथ छोड़ने से साफ मना कर दिया। वह अपने गुरु के पीछे चलता रहा क्योंकि वह जानता था कि यह केवल किसी इंसान का साथ नहीं परमेश्वर
परमेश्वर की योजना में समर्पण, सामर्थ्य और सम्मान का पाठ
की योजना का हिस्सा है। जब वे यर्दन नदी तक पहुंचे तो एलियाह ने अपने चोगे से पानी को छुआ और वह दो भागों में बंट गया। वे सूखी जमीन पर चलकर पार हो गए। उस शांति भरे गंभीर पल में एलिशा ने अपने गुरु से एक विनती की। मुझे आपकी आत्मा का दुगना भाग मिल जाए। एलियाह ने कोमलता से उत्तर दिया। यह कठिन मांग है। लेकिन अगर तुम
मुझे स्वर्ग जाते हुए देख पाओ तो यह तुम्हें मिल जाएगा। और तभी आग का एक रथ और अग्नि के घोड़े प्रकट हुए और एलिया को परमेश्वर ने एक बवंडर में उठा लिया। सीधे स्वर्ग की ओर एलिशा स्तब्ध खड़ा देखता रहा और जब वह चुपचाप जमीन पर गिरा चोगा उठाता है तो वह जान जाता है अब वह परमेश्वर की सेवा में अकेला नहीं बल्कि पूरी तरह से

सौंपा गया है। एक दिन कुछ लड़कों ने एलिशा का मजाक उड़ाया। वे उसे गंजा गंजा कहकर चिढ़ा रहे थे। उन्हें यह समझ नहीं थी कि वे किसी आम व्यक्ति से नहीं परमेश्वर के सेवक से उलझ रहे हैं। तब एलिशा ने परमेश्वर के नाम में उन्हें श्राप दिया और उसी समय जंगल से दो भालू निकल कर आए और 42 लड़कों को घायल कर दिया। यह घटना डराने के
लिए नहीं बल्कि यह सिखाने के लिए हुई कि परमेश्वर के लोगों के साथ उपहास नहीं किया जाता। यह उस समय के लोगों को यह याद दिलाने वाला क्षण था कि परमेश्वर के सेवक को आदर देना परमेश्वर का आदर करना है। फिर एक दुखी विधवा एलिशा के पास आई। उसकी आंखों में आंसू थे। उसका पति मर चुका था और वह अकेली कर्ज में डूबी थी। साहूकार
जब परमेश्वर ने असंभव को संभव बनाया
उसके दो बेटों को ले जाने को तैयार खड़े थे। उन्हें दास बनाने के लिए। एलिशा ने धीरे से पूछा, तेरे घर में क्या है? उस स्त्री ने कहा मेरे पास कुछ नहीं है। बस एक छोटी सी तेल की कुप्पी है। तब एलिशा ने उसे परमेश्वर की ओर से एक सीधी और सरल बात कही। जाओ अपने पड़ोसियों से खाली बर्तन मांगो जितने हो सके। फिर अपने घर आकर उस
एक कुप्पी से हर बर्तन में तेल डालना शुरू करो। वह स्त्री विश्वास के साथ चली गई और परमेश्वर ने वैसा ही किया जैसा कहा गया था। तेल बहता गया जब तक कि हर एक बर्तन भर नहीं गया। उसने तेल बेचा, कर्ज चुकाया और अपने बेटों को आजाद कर लिया। परमेश्वर ने उसकी घड़ी में सहायता की। उस छोटे से बर्तन को आशीर्वाद का दरवाजा बना दिया।
एलिशा की विश्वासपूर्ण यात्रा The Faithful Journey of Elisha
फिर एलिशा शूनेम नाम के नगर में गया। वहां एक भली और धनी स्त्री रहती थी। जिसने एलिशा को अपने घर में एक छोटा सा कमरा दिया ताकि जब भी वह वहां से गुजरे तो विश्राम कर सके। उस स्त्री की सेवा देखकर एलिशा ने उससे कहा, इस समय अगले वर्ष तुम्हारे घर एक पुत्र जन्म लेगा। उसने विश्वास के साथ वह बात ग्रहण की और अगले वर्ष परमेश्वर ने उसके गर्भ को फलवंत
किया। एक सुंदर पुत्र उसे मिला। पर कुछ समय बाद वही पुत्र अचानक बीमार पड़ा और मर गया। उस स्त्री का दिल टूट गया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह दौड़ती हुई एलिशा के पास गई। एलिशा चुपचाप उसके साथ लौटा। वह बच्चे के कमरे में गया। दरवाजा बंद किया और प्रार्थना करने लगा। फिर उसने नम्रता से अपना शरीर उस बालक पर फैलाया और
परमेश्वर से जीवन की भीख मांगी। परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली। बालक की सांसे लौट आई। वह जीवित हो गया। भूखमरी का समय था। चारों ओर दुर्भिक्ष फैला हुआ था। लेकिन परमेश्वर के सेवक एलिशा ने विश्वास ना खोया। वह अन्य भविष्य वक्ताओं के साथ बैठे थे और उन्होंने कहा एक हांडी में कुछ पकाओ ताकि सब खा सके। एक आदमी जंगल से कुछ
एलिशा और परमेश्वर की अद्भुत आपूर्ति
कंद मूल जंगली फल ले आया। उसे यह पता नहीं था कि वे जहरीले हैं। वह सब्जी में मिला दिए गए। जब सबने खाना शुरू किया तो किसी ने चिल्लाकर कहा हे परमेश्वर के जन इस हाड़ी में तो मृत्यु है। एलिशा ने डराया नहीं। गुस्सा भी नहीं किया। बस शांत होकर थोड़ा आटा लिया और वह हाड़ी में डाल दिया और चमत्कार हुआ। परमेश्वर की शक्ति से वह
झड़ दूर हो गया। सब्जी अब पूरी तरह सुरक्षित हो गई और सब ने भोजन किया। मृत्यु के बीच जीवन आया क्योंकि परमेश्वर की कृपा एलिशा के साथ थी। इसी समय एक व्यक्ति कुछ भेंट लेकर आया। उसके पास केवल 20 जौ की रोटियां थी। वह उन्हें परमेश्वर के सेवक को दे गया। एलिशा ने कहा, इन रोटियों को सब लोगों को बांट दो। पर सेवक ने कहा यह 100 लोगों के लिए बहुत कम है।

एलिशा ने विनम्र विश्वास के साथ उत्तर दिया। परमेश्वर कहता है वे खाएंगे और कुछ बचेगा भी। सेवक ने बांटना शुरू किया और आश्चर्य रोटियां उन सभी तक पहुंची। सब ने भरपेट खाया और तब भी बच गया। यह केवल रोटी नहीं थी। यह परमेश्वर की देखभाल का चिन्ह था। सीरिया का सेनापति नायमान एक महान योद्धा था। पर दुखी भी क्योंकि वह कोढ़ की बीमार था। वह एलिशा के चमत्कारों को जानकर इसराइल चला गया। मैं उम्मीद करता हूँ कि शायद परमेश्वर मुझे प्रसन्न करेगा। एलिशा मिलने की बजाय बस यह संदेश भिजवाया। यर्दन नदी में सात बार स्नान करो और तू चंगा हो जाएगा। नायमान बहुत नाराज हुआ। वह सोचता था कि कोई बड़ा प्रभावशाली चमत्कार होगा। पर उसके सेवकों ने उससे नम्रता से कहा, यदि
नम्रता से चंगा, पर लालच से गिरा
यह कठिन काम होता तो भी तू करता। फिर यह आसान बात क्यों नहीं मानते? नायमान का दिल पिघला। वह यर्दन नदी में उतरा। एक बार, दो बार और फिर सातवीं बार। जब वह निकला, उसका शरीर ऐसा हो गया जैसा एक छोटे बच्चे का होता है। कोमल और शुद्ध कोई भी दूर नहीं जो विश्वास से परमेश्वर के पास आता है, वह दया से भरा उसका चेहरा जरूर देखता है।
नायमान जो चंगा हो गया था अब वह पहले जैसा नहीं रहा। उसका दिल परमेश्वर के सामने झुक गया। उसने नम्रता से कहा अब मैं जानता हूं कि इसराइल का परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है। उसने एलिशा को उपहार देना चाहा चांदी, वस्त्र और बहुमूल्य चीजें। पर एलिशा ने ध्यान से और नम्रता से मना कर दिया। उसने कहा मैं यह सब नहीं लूंगा क्योंकि जो कुछ
हुआ है वह परमेश्वर ने किया है। लेकिन एलिशा का सेवक गहजी वह भीतर ही भीतर लालच में आ गया। उसने सोचा क्यों ना मैं जाकर कुछ ले लूं। वह चुपचाप नायमान के पीछे गया और झूठ बोलकर कहा कि एलिशा ने कुछ चांदी और वस्त्र मांगे हैं। नायमान ने खुशी से दे दिए क्योंकि वह तो आभारी था। गहजी जब वापस आया तो एलिशा ने शांति से पूछा गहजी
तू कहां गया? गहजी ने झूठ कहा पर एलिशा तो जानता था परमेश्वर ने उसे सब दिखा दिया था। फिर एलिशा ने दुख के साथ कहा अब नायमान का कोढ़ तुझ पर और तेरे वंश पर सदा बना रहेगा और वैसा ही हुआ। यह हमें सिखाता है जब हम परमेश्वर की सेवा में होते हैं तो हमें पूरी ईमानदारी और नम्रता से चलना चाहिए। लालच और छल परमेश्वर को पसंद नहीं।
हर छोटी-बड़ी चिंता में परमेश्वर साथ है
एक दिन एलिशा के चेले एक नया घर बना रहे थे। काम करते-करते एक चेला बहुत दुखी हो गया क्योंकि उसकी कुल्हाड़ी का फाल यर्दन नदी में गिर गया। उसने दुख से कहा, हे मेरे प्रभु, यह कुल्हाड़ी तो मैंने उधार ली थी। एलिशा ने उसे डांटा नहीं ना ही डराया बल्कि शांति से एक लकड़ी की डंडी काटी और उसे पानी में डाल दिया। फिर परमेश्वर ने चमत्कार किया। लोहे का फाल
पानी पर तैरने लगा। एक छोटी सी बात पर परमेश्वर ने दिखाया तू मुझसे कुछ भी छोटा या बड़ा नहीं है। मैं हर चिंता में तेरे साथ हूं। फिर एक दिन एक और कठिन घड़ी आई। आरामी सेना ने उस नगर को घेर लिया जहां एलिशा था। सब लोग डर के मारे कांप रहे थे। एलिशा का सेवक भी घबरा गया और बोला हे मेरे स्वामी हम तो गिर गए हैं। पर एलिशा मैं शांत था।
उसने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे प्रभु, इसकी आँखें खोल दो, ताकि वह इसे देख सकें।” तब सेवादार ने पहाड़ों पर अग्निमय रथों और स्वर्गदूतों की सेनाओं को देखा जो एलिशा की रक्षा के लिए खड़ी थी। यह दिखाता है कि जब हम अकेले महसूस करते हैं तो भी परमेश्वर की रक्षा हमारे चारों ओर होती है। हमें बस विश्वास की आंखों से देखना होता है।
आरामी जब सेना ने एलिशा को पकड़ लिया, तो वह डर गई नहीं, बल्कि भगवान से दया की मांग की। हे प्रभु, इनकी आंखें बंद करो ताकि वे कोई नुकसान न करें। भी परमेश्वर ने उनकी आंखों को अंधकार से भर दिया। उन्हें शांति से सामर्या नगर तक ले जाया। फिर उन्होंने फिर से प्रार्थना की हे प्रभु अब इनकी आंखें खोल। और जब उन लोगों ने आंखें खोली तो देखा कि वे इसराइलियों से घिरे हैं।

दया, विश्वास और न्याय एलिशा की भविष्यवाणी और परमेश्वर की समय पर प्रतिफलता
राजा ने पूछा क्या इन्हें मार डालूं? एलिशा ने बड़ी नम्रता से कहा नहीं। इन्हें भोजन दो, पानी दो और शांति से वापस भेज दो। और इस प्रेम और दया के कारण आरामी लोग फिर कभी इसराइल पर छापा मारने नहीं आए। पर कुछ समय बाद आराम के राजा ने सामरिया को घेर लिया और नगर में भयंकर अकाल आ गया। लोग बहुत दुख में थे और
खाने को कुछ नहीं बचा था। कुछ तो इतने मजबूर हो गए कि भयानक पापों में पड़ गए। इसराइल का राजा बहुत गुस्से में था और उसने इस सब का दोष एलिशा पर रखा। पर एलिशा घबराया नहीं। उसने प्रभु पर विश्वास करते हुए कहा कल इसी समय भोजन सस्ते में मिलेगा और भूख मिटेगी और वही हुआ। उस रात परमेश्वर ने कुछ ऐसा किया कि आरामी सेना डर के मारे सब छोड़कर भाग गई। खाने पीने
का सारा सामान वहीं रह गया। सुबह जब इसराइली वहां पहुंचे तो उन्हें भोजन मिल गया और प्रभु की भविष्यवाणी पूरी हुई। शूनेम की स्त्री जिसका पुत्र एलिशा की प्रार्थना से जीवित हुआ था। उसे और उसके परिवार को अकाल में भूमि छोड़नी पड़ी। जब वह लौटी तो उसकी जमीन और सब कुछ किसी और ने ले लिया था। वह राजा के पास न्याय मांगने गई। उसी समय एलिशा का सेवक गहजी

राजा को एलिशा के चमत्कारों की बातें सुना रहा था और उसी स्त्री के पुत्र के जीवन में लौटने की गवाही दे रहा था। राजा ने स्त्री की बात सुनी। उसका हृदय द्रवित हुआ और उसने आज्ञा दी। उसकी सारी जमीन और सब उपज उसे लौटा दी जाए। यह
दिखाता है कि जब हम विश्वास में टिके रहते हैं तो परमेश्वर सही समय पर सब कुछ लौटा देता है। एक दिन एलिशा दमिश्क पहुंचा। आराम का राजा बेनह हद बीमार था। उसने अपने सेवक हजाइल को एलिशा के पास भेजा। यह पूछने कि क्या वह अच्छा होगा?
जब एलिशा ने हजाइल को देखा तो वह चुपचाप देखता ही रह गया और फिर रो पड़ा। हजाइल घबरा गया और पूछा हे मेरे स्वामी आप क्यों रो रहे हैं? मैं देखता हूँ कि तू राजा बनेगा, लेकिन यह इसराइल को बहुत कष्ट देगा, एलिशा ने दबी आवाज में कहा।
न्याय का समय: एलिशा की भविष्यवाणी और प्रभु की योजना की पूर्णता
एलिशा का दिल टूट गया क्योंकि वह जानता था कि आने वाले दिनों में दुख होगा पर उसने सब कुछ प्रभु पर छोड़ दिया। एलिशा ने हजाल से कहा कि राजा मर जाएगा और उसकी जगह वही गद्दी पर बैठेगा। अगले दिन हजाल ने राजा को चुपचाप मार डाला और आराम का नया शासक बन गया। एलिशा की यह गंभीर और दुखद भविष्यवाणी पूरी हुई। कुछ समय बाद एलिशा
ने एक युवक नबी को भेजा कि वह इसराइल की सेना के सेनापति यहू को जाकर अभिषिक्त करें। नबी ने यहू से कहा कि वह इजराइल का अगला राजा होगा और उसे प्रभु का न्याय पूरा करना है। उसे आहाब और इजबेल के पूरे घराने का अंत करना होगा क्योंकि उन्होंने इसराइल को पाप में गिराया था। यहू ने जैसे ही यह सुना, वह तुरंत उठ खड़ा हुआ और
प्रभु की आज्ञा मानने के लिए निकल पड़ा। उसने एक-एक करके उन सभी बातों को पूरा किया जो परमेश्वर ने एलिया और एलिशा के द्वारा कह दी थी। जब वह इजल पहुंचा वहां रानी इजेबेल खिड़की से उसे देख रही थी। वह ना डरी ना पछताई बल्कि उसे उपहास में कुछ कह डाला। यहू ने ऊपर देखा और पूछा कौन मेरे साथ है? कुछ सेवकों ने सिर झुकाया और
यहू के कहने पर उन्होंने रानी को खिड़की से नीचे गिरा दिया। वह जमीन पर गिरी और घोड़ों के पैरों तले कुचली गई। जब लोग उसे दफनाने गए तो केवल उसकी खोपड़ी, हाथ और पैर ही मिले। इस प्रकार एलियाह की वह भविष्यवाणी पूरी हुई कि कुत्ते इजेबेल का शरीर खा जाएंगे और उसका कोई स्मरण भी ना रहेगा। उसकी मृत्यु इसराइल के इतिहास में
एक गहरा मोड़ थी। उसके द्वारा किए गए अन्याय और दुष्टता का अंत हुआ।
एलिशा की मृत्यु के बाद भी परमेश्वर की शक्ति का प्रकट होना
समय बीतता गया। एलिशा वृद्ध और बीमार हो चला था। इसराइल का राजा योवाश उससे मिलने आया और बहुत दुखी हो गया। उसकी चिंता थी कि उसके राज्य का क्या होगा। एलिशा ने उससे कहा कि खिड़की से तीर चला जाना चाहिए. फिर उसने कहा कि तीर जमीन पर मारना चाहिए। राजा ने जमीन पर तीन बार तीर मारा।
एलिशा ने दुखी होकर कहा काश तू पांच या छह बार मारता। तब तू अपने शत्रुओं पर पूरी विजय प्राप्त करता। अब तू उन्हें केवल कुछ बार ही पराजित करेगा। राजा युवाश ने जब जमीन पर केवल तीन बार तीर मारे तो एलिशा ने बड़ी नम्रता से कहा कि काश उसने और बार मारा होता। इस कारण इसराइल केवल तीन बार ही आराम पर विजय पा सकेगा। उसकी कमी सिर्फ
तीरों में नहीं बल्कि विश्वास और उत्साह में थी। एलिशा बूढ़े और बीमार हो चुके थे। कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया और उन्हें दफनाया गया। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि परमेश्वर की शक्ति उनके जीवन के बाद भी प्रकट हुई। एक दिन कुछ इसराइली लोग एक व्यक्ति को दफनाने जा रहे थे। तभी शत्रुओं का एक दल आता दिखा तो डर के मारे उन्होंने
परमेश्वर पर विश्वास, नम्रता और दया का समय
शव को जल्दी से एलिशा की कब्र में डाल दिया। जैसे ही उस मृत व्यक्ति का शरीर एलिशा की हड्डियों को छुआ जीवित हो गया और खड़ा हो गया। यह एक मौन लेकिन गहरा संकेत था कि परमेश्वर का हाथ उस पर था और उसका काम केवल मृत्यु तक सीमित नहीं था। एलिशा का जीवन हमें कई बातें सिखाता है। सबसे पहले यह कि परमेश्वर के कार्य में सच्चाई
और नम्रता से सेवा करना कितना महत्वपूर्ण है। एलिया की सेवा पूरे समर्पण

और प्रेम से की। उसके इसी समर्पण के कारण उसे वह आशीष मिली जिसकी कोई तुलना नहीं। चाहे वह एक विधवा की मदद हो। एक मां का मरा हुआ बच्चा हो या भूखे लोगों के लिए रोटियों का बढ़ जाना। हर बार परमेश्वर ने दिखाया कि जहां मनुष्य की सीमा समाप्त होती है वहीं
छोटे से विश्वास को लेकर वह बड़ी-बड़ी
से उसकी करुणा शुरू होती है। एलिशा की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि परमेश्वर का काम चुपचाप भी होता है बिना शोर बिना दिखावे लेकिन बहुत गहराई से सबसे बड़ी सीख जो हमें एलिशा के जीवन से मिलती है वह यह है कि हमें परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखना है। चाहे हालात कैसे भी क्यों ना हो, चाहे सब कुछ असंभव लगे, लेकिन जो परमेश्वर को
जानते हैं वे जानते हैं कि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। एलिशा का हृदय बहुत कोमल और दयालु था। वह लोगों के लिए टूटता था दुखियों के लिए, बीमारों के लिए, भूखों के लिए और इसी करुणा के कारण परमेश्वर ने उसे एक साधन बनाया चंगाई और बहाली का। उसी तरह आज हम भी उस दया के पात्र बनने को बुलाए गए हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम भी
अपने आसपास के लोगों के लिए उसकी दया को दिखाएं। छोटे कामों में, सहानुभूति में, चुपचाप मदद करने में। एलिशा की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि परमेश्वर हर बात में सोवरन यानी प्रभुता रखने वाला है। वह हर विवरण में, हर निर्णय में, हर परिस्थिति में कार्य कर रहा है और कभी भी उसकी योजना असफल नहीं होती। यहां तक कि जब एलिशा मर
गया, उसकी कब्र से भी एक मरे हुए व्यक्ति को जीवन मिल गया। क्योंकि परमेश्वर की शक्ति समय से, मृत्यु से, किसी भी सीमा से बंधी नहीं है। एलिशा के जीवन की यह यात्रा हमें याद दिलाती है कि जब हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, तब वह हमारी कल्पना से परे काम करता है। हमारे छोटे से विश्वास को लेकर वह बड़ी-बड़ी योजनाएं पूरी करता है।
इस कहानी से जुड़े 5 महत्वपूर्ण और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) इस प्रकार हो सकते हैं:
1. एलिशा कौन थे और उनका जीवन क्यों महत्वपूर्ण है?
एलिशा इज़राइल के एक प्रमुख भविष्यवक्ता थे, जिन्हें परमेश्वर ने एलियाह के बाद चुना। उनका जीवन आज्ञाकारिता, नम्रता और चमत्कारों से भरा था, जो दर्शाता है कि परमेश्वर साधारण इंसानों के माध्यम से असाधारण काम कर सकते हैं।
2. एलिशा ने कौन-कौन से प्रमुख चमत्कार किए?
एलिशा ने मरे हुए को जीवित किया, जहरीले पानी को शुद्ध किया, नायमान को कोढ़ से चंगा किया, तेल की कुप्पी से अनेक बर्तन भरवाए, और यर्दन नदी में गिरी कुल्हाड़ी को तैरता हुआ बाहर निकाला। ये सब चमत्कार विश्वास और परमेश्वर की शक्ति का प्रमाण थे।
3. एलिशा की नम्रता और ईमानदारी कैसे प्रकट होती है?
एलिशा ने कभी अपने लिए यश या धन नहीं मांगा। जब नायमान ने उन्हें भेंट देना चाहा, तो उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने सिखाया कि परमेश्वर की सेवा में लालच और छल का कोई स्थान नहीं है।
4. एलिशा की मृत्यु के बाद भी उनके माध्यम से चमत्कार कैसे हुआ?
जब एक मृत व्यक्ति का शव गलती से एलिशा की कब्र में रखा गया, तो वह जीवित हो गया। यह इस बात का संकेत था कि परमेश्वर की सामर्थ्य केवल जीवन तक सीमित नहीं है।
5. एलिशा की कहानी हमें क्या सिखाती है?
एलिशा का जीवन हमें सिखाता है कि परमेश्वर का कार्य करने के लिए न तो ऊँचा पद चाहिए और न ही विशेष योग्यता—बल्कि विश्वास, नम्रता और आज्ञाकारिता ही पर्याप्त है। वह दिखाते हैं कि छोटी बातों में भी परमेश्वर की महानता प्रकट होती है।
अधिक कहानियों के लिए यहां क्लिक करेंः meghnadit.com
एलिशा की कहानी सचमुच प्रेरणादायक है। उसकी नम्रता और परमेश्वर के प्रति समर्पण हर किसी को सिखाता है कि सच्चा बल इंसान के अंदर नहीं, बल्कि ईश्वर की शक्ति में होता है। मुझे लगता है कि एलिशा के चमत्कारों का वर्णन करते समय यह बताना अहम है कि वह कभी भी अपनी शक्ति का दंभ नहीं करता था। क्या आपको नहीं लगता कि आज के समय में ऐसा विश्वास दुर्लभ हो गया है? एलिशा की यह यात्रा हमें यह याद दिलाती है कि ईश्वर हर परिस्थिति में हमारे साथ है, चाहे हम उसे देख पाएं या नहीं। मैं सोच रहा हूं कि अगर हम एलिशा की तरह विश्वास रखें, तो क्या हम भी ऐसे चमत्कार देख सकते हैं? क्या आपका कोई ऐसा अनुभव है जब आपने महसूस किया कि ईश्वर आपके साथ है?